राजस्थान: निकायों में SIR रोकने के फैसले पर विवाद

राजस्थान में कार्यकाल पूरा कर चुके निकायों में चल रहे निर्वाचक नामावली के पुनरीक्षण के कार्यक्रम(SIR) को स्थगित करने के राज्य निर्वाचन आयोग के फैसले पर सवाल उठने लगे हैं। पूर्व विधायक संयम लोढ़ा ने इसे संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की अवमानना बताया है। राजस्थान में हाल में नए राज्य निर्वाचन आयुक्त मघुकर गुप्ता का कार्यकाल पूरा होने पर राजेश्वर सिंह राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर नियुकति की गई है। मघुकर गुप्ता ने सरकार की मंशा के उलट जाते हुए पिछले महीने पंचायतों और निकायों में चुनाव कार्यक्रम घोषित कर दिए थे। इसके चलते निर्वाचक नामावली के पुनरीक्षण के कार्यक्रम(SIR) शुरू कर दिया गया था। लेकिन अब नए राज्य निर्वाचन आयुक्त ने इस पर रोक लगा दी है।

कर चुनाव कार्यक्रम तय समय पर करवाए जाएं। उन्होंने कहा- राजस्थान के निर्वाचन आयोग ने नगर पालिकाओं के चुनाव को लेकर पूर्व में मतदाता नामावली के पुनरीक्षण का जो कार्यक्रम(SIR) घोषित किया था उसे स्थथगित कर दिया। यह संवैधानिक प्रावधान की धज्जियां उड़ाना तो है ही, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की भी अवमानना भी है।

सुरेश महाजन बनाम मध्यप्रदेश सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत स्पष्ट निर्णय दिया है, जिसकी यह आदेश अवमानना कर रहा है। उन्होंने कहा- निकाय चुनावों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट की एकल पीठ और बाद में खंड पीठ ने जो अंतरिम आदेश दिए हैं वह एक मामले के तथ्यों को लेकर हैं। संवैधानिक प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के संबंध में नहीं है। राजस्थान का निर्वाचन आयेाग, संवैधानिक प्रावधान, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और नगर पालिका कानून, तीनों के अनुसार इस बात के लिए बाध्य है कि किसी भी नगर पालिका का 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो उससे पहले ही उसके चुनाव करवा लिए जाएं। लेकिन दबाव के चलते पिछले 10 महीनों से उन 52 नगर पालिकाओं के चुनाव टाले जा रहे हैं जिनके चुनाव नवंबर में हो जाने चाहिए।

लोढ़ा ने बताया कि इन 52 नगर पालिकाओं में चुनाव करवाए जाने को लेकन उन्होंने हाईकोर्ट की डबल बेंच में याचिका लगा रखी है। जिस पर सुनवाई पूरी हो चुकी है और बैंच ने फैसला रिजर्व कर रखा है। उन्होंने कहा कि राजस्थान के कानून मंत्री खुद भी हाईकोर्ट के अच्छे अधिवक्ता रहे हैं फिर भी वे अपनी सरकार को संविधान की धज्जियां उड़ाने से क्यूं नहीं रोक रहे हैं।

उन्होंने कहा- सर्वोच्च न्यायालय ने सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश सरकार के मामले में 2022 में इस संबंध में जो निर्णय दिया है उसका अंश भी मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं ,जो मैं समझता हूं राज्य निर्वाचन आयोग के समझने के लिए पर्याप्त होगा। जिस एकल पीठ और खंडपीठ का हवाला राज्य निर्वाचन आयोग ने निर्वाचक नामावली पुनरीक्षण को रोकने के आदेश में दिया है, उस मामले के तथ्य एक प्रकरण के हैं। निर्वाचन आयोग को संविधान के दायरे में और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की पालना में काम करना चाहिए।

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