हरियाणा में भाजपा की नजर अब दलितों और पिछड़ा वर्ग पर, भरोसा जीतने को उठाया यह कदम
हरियाणा में भाजपा की निगाह दलित और पिछड़े वर्ग को साधने पर टिकी है। महर्षि वाल्मीकि, संत रविदास और डा. भीमराव अंबेडकर के राज्य स्तरीय जयंती समारोह मनाने के बाद भाजपा ने अब संत कबीर दास की जयंती मनाकर धानक समाज का भरोसा जीतने की कोशिश की है। इस वोट बैंक को कभी कांग्रेस की झोली में माना जाता था, मगर लोकसभा चुनाव में पहला मौका रहा, जब दलित और पिछड़ों ने पूरी शिद्दत के साथ कमल का फूल थामा है। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा दलित और पिछड़े वर्ग का समर्थन जुटाने की कोशिश में लगी है।
महर्षि वाल्मीकि, संत रविदास और डा. अंबेडकर के बाद कबीर जयंती मनाकर दिए राजनीतिक संदेश
हरियाणा में जाट और गैर जाट की खाई जिस तरह से चौड़ी होती जा रही है। ऐसे में भाजपा की कोशिश गैर जाट मतदाताओं का भरोसा बरकरार रखने की है। लोकसभा चुनाव के नतीजे इस बात का गवाह हैं कि भाजपा को भले ही जाटों ने भी वोट दिए, मगर वह गैर जाट मतदाताओं के एकतरफा समर्थन से ही सभी दस सीटों पर जीत का परचम लहराने में कामयाब रही है। अब राज्य में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव हैं, जिसकी तैयारी में पार्टी और सरकार कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ रहे।
हरियाणा में भाजपा ने पहली बार महर्षि वाल्मीकि जयंती, संत रविदास की जयंती और डा. भीमराव अंबेडकर की जयंती राज्य स्तर पर मनाई है। खुद मुख्यमंत्री इन समारोहों में शामिल हुए। हर जिला मुख्यालय और विधानसभा स्तर पर भी महापुरुषों के जयंती समारोह आयोजित किए गए। इन तीनों महापुरुषों के जयंती समारोह लोकसभा चुनाव से पहले आयोजित किए गए थे, जिसका असर भाजपा के सामने है। अब विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने संत कबीर दास के राज्य स्तरीय जयंती समारोह के लिए जींद का चयन किया है, जो पार्टी और सरकार की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को करीब 58 फीसद वोट मिले हैं, जिसमें बड़ा हिस्सा दलित और पिछडे वर्ग के मतदाताओं का है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 75 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। हर विधानसभा क्षेत्र में धानक समाज के कम से कम पांच हजार मत हैं, उसी तरह से बाकी दलित और पिछड़े वर्ग के मतों का बड़ा हिस्सा है। इसे भाजपा साधने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रही है।
वर्ग, लिंग, जाति और क्षेत्र के आधार पर मूल्यांकन नहीं करती सरकार
” मुख्यमंत्री मनोहर लाल समाज के शोषित व वंचित वर्ग के हितों को लेकर बेहद चिंतित हैं। ऐसे लोगों को शिक्षित बनाकर उन्हें समाज, व्यवस्था और राजनीति में सम्मानजनक मुकाम तक पहुंचाने की योजना पर मुख्यमंत्री काम कर रहे हैं। यह पहली सरकार है, जिसने महापुरुषों की जयंती राज्य स्तर पर मनाने की पहल की है। सही मायने में संत कबीर दास के दोहे ‘न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर’ के सिद्धांत पर चलते हुए मुख्यमंत्री समाज के वंचित और जरूरतमंद वर्ग के लिए काम कर रहे हैं। हमारी सरकार वर्ग, लिंग, जाति और क्षेत्र के आधार पर मूल्यांकन नहीं करती।