इसरो की ताकत बना आईआईटी इंदौर

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर के शोधकर्ताओं ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। संस्थान ने भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक अत्याधुनिक क्रायोजेनिक ऑप्टिकल फाइबर सेंसर विकसित किया है, जो अत्यंत निम्न-तापमान (-270°C तक) वाले वातावरण में भी सटीक रूप से काम करने में सक्षम है।

इसरो के साथ विशेष सहयोग
यह नवाचार मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की मेक्ट्रोनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन लैब द्वारा प्रोफेसर आई.ए. पलानी और शोधकर्ता डॉ. नंदिनी पात्रा के नेतृत्व में विकसित किया गया है। इस परियोजना को इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (एलपीएससी) के साथ रेस्पॉन्ड कार्यक्रम के तहत कार्यान्वित किया गया है। इस तकनीक के लिए वर्तमान में तीन संयुक्त पेटेंट प्रक्रिया में हैं।

क्यों पड़ी इस सेंसर की जरूरत?
एयरोस्पेस, ऊर्जा और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में कई उन्नत प्रणालियों को हीलियम, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन के क्वथनांक के करीब के तापमान पर काम करना पड़ता है। पारंपरिक सेंसर इतने ठंडे वातावरण में संघर्ष करते हैं। ऑप्टिकल फाइबर सेंसर हल्के होने और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हस्तक्षेप से मुक्त होने के कारण बेहतर होते हैं, लेकिन स्टैंडर्ड ऑप्टिकल फाइबर भी बहुत कम तापमान पर अपनी संवेदनशीलता खो देते हैं।

‘शेप मेमोरी एलॉय’ कोटिंग से मिली सफलता
इस चुनौती से पार पाने के लिए, आईआईटी इंदौर की टीम ने ऑप्टिकल फाइबर पर ‘शेप मेमोरी एलॉय’ (एसएमए) कोटिंग का इस्तेमाल किया। एसएमए में व्यापक तापमान सीमा में काम करने की अनूठी क्षमता होती है। यह कोटिंग फाइबर से गुजरने वाले ऑप्टिकल सिग्नल में होने वाले बदलावों को बढ़ा देती है, जिससे क्रायोजेनिक तापमान पर भी सेंसर की संवेदनशीलता में उल्लेखनीय सुधार होता है।

नए सेंसर की प्रमुख विशेषताएं

  • -270°C तक के न्यूनतम तापमान पर भी विश्वसनीय संचालन की क्षमता।
  • पारंपरिक दूरसंचार ऑप्टिकल फाइबर की तुलना में उल्लेखनीय रूप से उच्च संवेदनशीलता, जो आमतौर पर -150°C से नीचे प्रदर्शन खो देते हैं।
  • मौजूदा मेटल-कोटेड फाइबर सेंसर की तुलना में बेहतर प्रदर्शन।

इन क्षेत्रों में होगा क्रांतिकारी उपयोग
यह नव विकसित सेंसर कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसका उपयोग -180°C तक के तापमान पर एलएनजी पाइपलाइनों की निगरानी, रिसाव का पता लगाने, प्रक्षेपण यान के उपकरणों के तापीय स्वास्थ्य की निगरानी और अंतरिक्ष यान के क्रायोजेनिक ईंधन टैंकों में तापमान और द्रव स्तर को मापने के लिए किया जा सकेगा।

‘स्वदेशी एयरोस्पेस तकनीकों में बड़ा योगदान’
आईआईटी इंदौर के निदेशक, प्रोफेसर सुहास जोशी ने कहा, “यह नवाचार भारत की रणनीतिक तकनीकी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इसरो के साथ हमारा सहयोग सीधे राष्ट्रीय अंतरिक्ष मिशनों का समर्थन कर सकता है और स्वदेशी एयरोस्पेस तकनीकों में योगदान दे सकता है।” शोध दल का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर पलानी ने कहा कि अंतरिक्ष यान के ईंधन टैंकों में अति-निम्न तापमान की निगरानी एक बड़ी चुनौती है और यह नया सेंसर इस समस्या का प्रभावी समाधान है।

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