दुनिया के पांच सबसे खतरनाक रेल मार्ग, यात्रा के दौरान डर से कांपते हैं लोग

अधिकतर लोगों को ट्रेन में यात्रा करना पसंद होता है। यात्रा के लिए ट्रेन आरामदायक और सस्ता परिवहन है। इसके साथ ही कई रूटों पर ट्रेन से यात्रा करना रोमांच से भरा होता है। ट्रेन से पहाड़, जगल और नदियों समेत कई प्राकृतिक सुंदरता देखने को मिलती हैं। प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही दुनिया में कई ऐसे रेल रूट हैं जिन पर यात्रा के दौरान डर भी लगता है। आज हम आपको कुछ रेलमार्गों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां से लोगों को यात्रा करने में डर लगता है। यह रेलमार्ग दुनिया के सबसे खतरनाक रेलमार्ग माने जाते हैं।

भारत में चेन्नई-रामेश्वरम मार्ग
भारत का चेन्नई और रामेश्वरम को जोड़ने वाला रेल मार्ग दुनिया के सबसे खतरनाक और एडवेंचरस रेलवे रूट में शामिल है। इस रूट को पवन ब्रिज के नाम से जाना जाता है। हिन्द महासागर के ऊपर बने पवन ब्रिज की लंबाई 2.3 किलोमीटर है। साल 1914 में इस ब्रिज को बनाया गया था। जब समुद्र का जल स्तर बढ़ता है, तो यह रूट खरतनाक हो जाता है।

दक्षिण अफ्रीका में केप टाउन मार्ग
दक्षिण अफ्रीका के एक रेल मार्ग पर यात्रा करने से लोग डरते हैं। केप टाउन रेलवे ट्रैक चोरी और हमलों की वजह से जाना जाता है। केप टाउन रेल मार्ग पर ट्रेनों में अक्सर चोरी और हमले की घटनाएं होती रहती हैं। इन हमलों और चोरी की वजह से हर दिन कोई न कोई ट्रेन रद्द की जाती है।

आरगो गेडे रेलमार्ग
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता से बैनडंग के बीच चलने वाली रेलगाड़ी एक बेहद ऊंचे और खतरनाक पुल से होकर गुजरती है। इसे आरगो गेडे रेलमार्ग कहा जाता है। इस पुल के दोनों तरफ बाड़े नहीं लगे हैं, जिससे यह और भयानक लगता है। यही वजह है कि इस पुल से गाड़ी गुजरते ही यात्रियों की सांसें अटक जाती हैं। डरकर कुछ यात्री चीखने भी लगते हैं। लेकिन, इस डर के अलावा पुल से नीचे अगर देखें तो काफी शानदार नजारा दिखता है।

एसो मियामी मार्ग
जापान में अलास्का से व्हाइटहॉर्स, युकोन बंदरगाह को जोड़ने वाला व्हाइट पास और युकोन रेल मार्ग रोमांच से भरा हुआ है। इस रेल मार्ग में आपको प्रकृति की सुंदरता देखने को मिलती है। इस रूट पर ट्रेन तीन हजार फुट की चढ़ाई करती है जो काफी डरावना होता है। इसलिए यह रूट खतरनाक माना जाता है।

इक्वाडोर का डेविल्स नोज
यह रेल रूट समुद्र तल से नौ हजार फीट की ऊंचाई पर है। इस रेल मार्ग का निर्माण करीब 33 साल में पूरा हुआ था। यह 1872 में बनना शुरू हुआ और 1905 में बनकर तैयार हो पाया। पहाड़ की वजह से होने वाली समस्याओं को दूर के लिए सरकार ने इसका निर्माण कराया था। यह दक्षिण अमेरिका में इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना है।

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