पंजाब: कांग्रेस के पूर्व विधायक दलबीर गोल्डी आम आदमी पार्टी में शामिल

दलबीर सिंह गोल्डी ने सियासत की शुरूआत कॉलेज, यूनिवर्सिटी के चुनाव में जीत हासिल करके की थी। पंजाब की सरगर्म सियासत में वह 2017 में विधानसभा हलका धूरी से चुनाव जीतकर विधायक बने। इसके बाद कांग्रेस पार्टी द्वारा उन्हें 2022 में विधानसभा हलका धूरी से दोबारा कांग्रेस द्वारा अपना उम्मीदवार बनाया गया, लेकिन इस चुनाव में वह भगवंत मान से 50 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हार गए थे।

पंजाब के जिला संगरूर के कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व विधायक दलबीर सिंह गोल्डी ने बुधवार को आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। उन्होंने मंगलवार को कांग्रेस से इस्तीफा दिया था।

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बुधवार को कांग्रेस के संगरूर जिला अध्यक्ष व पूर्व विधायक दलबीर सिंह गोल्डी को आप में शामिल करवाया। कांग्रेस में सेंध लगाकर मुख्यमंत्री ने चुनाव में संगरूर से आप की दावेदारी मजबूत की है।

बताया जाता है कि मान ने तिहाड़ जेल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के दौरान इस दांव पेंच पर भी चर्चा की थी। मुलाकात के बाद खुद सीएम मान ने कहा था कि केजरीवाल ने संगरूर का हाल-चाल खास तौर पर पूछा है जिससे संकेत मिले थे कि संगरूर में कुछ सियासी उथल-पुथल हो सकती है।

आम आदमी पार्टी, संगरूर संसदीय सीट को हर हाल में जीतना चाहती है। इस सीट से पार्टी की ही नहीं बल्कि खुद मुख्यमंत्री भगवंत मान की भी प्रतिष्ठा जुड़ी है । कांग्रेस के प्रत्याशी सुखपाल सिंह खैरा की ओर से मुख्यमंत्री भगवंत मान को लगातार चुनौती दी जा रही है और ऐसे में मुख्यमंत्री मान ने लोहे को लोहे से काटने की तर्ज पर कांग्रेस के ज़िला अध्यक्ष व पूर्व विधायक दलबीर सिंह गोल्डी को आप के पाले में ले आए हैं।

आम विधानसभा चुनाव में दलबीर गोल्डी को मुख्यमंत्री भगवंत मान, धूरी से हरा चुके हैं और अब उन्हीं के हाथ में झाड़ू थमाकर सभी को चौंका दिया है। सियासी जानकार इस घटनाक्रम को अहम मान रहे हैं।

सियासी जानकारों का मानना है कि दलबीर सिंह गोल्डी, किसी कमिटमेंट के तहत आप के हुए हैं। कैबिनेट मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर, बरनाला से विधायक हैं। यदि वो लोकसभा चुनाव जीतते हैं तो बरनाला विधानसभा सीट खाली होगी और वहां से गोल्डी को मैदान में उतारा जा सकता है। बहरहाल, मुख्यमंत्री भगवंत मान के नए दांव ने विरोधी दलों को सकते में डाल दिया है और ऐसे हालात में विरोधी दलों को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।

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