पूजा स्थल कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज, ओवैसी ने दायर की है याचिका

 वर्ष 1991 के पूजा स्थल कानून के अमल की मांग वाली एआइएमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को सुनवाई करेगा। इस कानून के तहत किसी भी स्थान का धार्मिक चरित्र वही रहेगा जैसा 15 अगस्त, 1947 को था।

वकील एवं सांसद ओवैसी ने यह याचिका 17 दिसंबर, 2024 को अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्यूबी के जरिये दाखिल की थी। हालांकि, 12 दिसंबर को प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 1991 के इस कानून के विरुद्ध इसी तरह की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए धार्मिक स्थलों खासकर मस्जिदों एवं दरगाहों पर पुनर्दावों की मांग वाले लंबित मामलों पर कोई भी अंतरिम या अंतिम आदेश जारी करने और नई याचिकाएं स्वीकार करने पर रोक लगा दी थी।

परिणामस्वरूप शीर्ष अदालत ने 10 मस्जिदों का मूल धार्मिक चरित्र पता लगाने के लिए सर्वे की मांग वाली हिंदू पक्षकारों द्वारा दाखिल लगभग 18 याचिकाओं की सुनवाई पर रोक लगा दी थी। इनमें वाराणसी स्थित ज्ञानवापी, मथुरा स्थित शाही ईदगाह मस्जिद और संभल स्थित शाही जामा मस्जिद शामिल हैं।

वकीलों को वरिष्ठ पदनाम देने को चुनौती वाली याचिका पर आज सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को उस याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने की पूरी प्रक्रिया को रद करने की मांग की गई है। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर प्रकाशित कार्यसूची के अनुसार याचिका पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ सुनवाई करेगी। यह याचिका मुंबई निवासी वकील मैथ्यू जे. नेदुम्परा ने दाखिल की है।इसमें उन्होंने कहा है कि वकीलों को वरिष्ठ के रूप में नामित करने की पूरी प्रक्रिया पक्षपात, भाई-भतीजावाद, संरक्षणवाद और अन्य अवैध चीजों से दूषित है। याचिका में यह भी कहा गया है कि नामित वरिष्ठ अधिवक्ताओं के लिए अलग ड्रेस कोड वकीलों के बीच अन्यायपूर्ण वर्गीकरण है और रंगभेद के समान है। यह असंवैधानिक और अमान्य है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है।

सिंघवी का जजों के स्वजनों को नियुक्त नहीं करने के कॉलेजियम प्रस्ताव का समर्थन

कांग्रेस नेता और अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के हाई कोर्ट में जजों के नजदीकी रिश्तेदारों को नियुक्त नहीं करने के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि इसे जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए। चूंकि मूलत: यही अंगीकार किया गया था कि न्यायिक नियुक्तियां बिना किसी एजेंडे के होनी चाहिए। सिंघवी ने एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा कि अलग कॉलेजियम का यह प्रस्ताव सच है तो यह विचारशील, तार्किक व अच्छा है और इसे जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए।

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