बिजली निजीकरण: सलाहकार कपंनी पर अमेरिका में लग चुका है 40 हजार डालर का जुर्माना

बिजली निजीकरण का प्रस्ताव तैयार करने वाली सलाहकार कंपनी जुर्माना मामले में दोषमुक्त नहीं हुई है। उस पर अमेरिका में 40 हजार डालर का जुर्माना लग चुका है। नए वित्त निदेशक के आने के बाद ही कंपनी ने अपना भुगतान मांगा तो पोल खुली।

उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगमों के निजीकरण का प्रस्ताव तैयार करने वाली सलाहकार कंपनी के मामले में नया मोड़ आ गया है। अभी यह कंपनी जुर्माना मामले में दोषमुक्त नहीं हुई है। वित्त निदेशक के जाते ही कंपनी ने भुगतान मांगा तो हकीकत सामने आ गई। अब नए सिरे से पत्रावलियां खंगाली जा रही हैं।

निजीकरण प्रस्ताव तैयार करने के लिए सलाहकार कंपनी ग्रांट थार्नटन को चुना गया। इस कंपनी पर अमेरिका में 40 हजार डॉलर का जुर्माना लगा था। मामला खुलने पर पॉवर कॉर्पोरेशन ने कंपनी से जवाब मांगा। जवाब में कंपनी ने स्वीकार किया कि उस पर जुर्माना लगा था, लेकिन उसने जमा कर दिया। दो बार उसके जवाब बदलवाए गए।

कुमार नारंग ने अपने स्तर पर कंपनी को क्लीन चिट दे दी थी
उस वक्त भी राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने विरोध दर्ज कराया था, लेकिन तत्कालीन निदेशक (वित्त) निधि कुमार नारंग ने अपने स्तर पर कंपनी को क्लीन चिट दे दी। इससे कंपनी अब भी कार्य कर रही है। निदेशक (वित्त) का कार्यकाल नहीं बढ़ा। ऐसे में नए निदेशक वित्त के रूप में संजय मेहरोत्रा ने कार्यभार ग्रहण कर लिया है।

इस बीच कंपनी ने अब तक किए गए कार्य के एवज में भुगतान मांगा। इस पर नए निदेशक वित्त ने कंपनी से जुड़े दस्तावेजों की पड़ताल कराई। सूत्रों के मुताबिक, पता चला कि टेंडर मूल्यांकन कमेटी के सहमति न देने से कंपनी को विधिक रूप से अभी दोषमुक्त नहीं किया गया है। जानकारों का कहना है कि कंपनी तभी दोषमुक्त मानी जाएगी, जब एनर्जी टास्क फोर्स और इंजीनियर ऑफ कांट्रैक्ट की संस्तुति हो। ऐसे में कंपनी का भुगतान फंस सकता है।

निजीकरण के हर कदम की हो जांच तो खुलेगी पोल : वर्मा
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि पूर्व निदेशक वित्त ने जाते-जाते कई कारनामे किए हैं। इनकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि पहले सलाहकार कंपनी का गलत तरीके से चयन किया गया। फिर भ्रष्टाचार के तहत कार्य कराया जा रहा है।

निजीकरण के लिए पूर्वांचल व दक्षिणांचल निगमों की संपत्ति की कीमत एक लाख करोड़ से अधिक है। इनका सही मूल्यांकन कर रिजर्व बीट प्राइस निकली जाए तो देश का कोई भी निजी घराना इनके टेंडर में शामिल नहीं होगा।

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