भारत-अमेरिका में कारोबारी समझौते पर गहन विमर्श

भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय कारोबारी समझौते (बीटीए) को लेकर वार्ता नई दिल्ली में शुरू हो गई। वार्ता का यह दौर इस सप्ताह शुक्रवार तक चलने वाली है और बहुत संभव है कि दो अप्रैल, 2025 से पहले दोनों देशों के बीच उक्त कारोबारी समझौते को लेकर सहमति बन जाए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो अप्रैल से ही भारत पर पारस्परिक टैक्स लगाने की धमकी दी हुई है।
दोनों देशों के बीच शुरू हुई वार्ता को लेकर आधिकारिक तौर पर कोई बयान अभी नहीं आया है, लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि अमेरिका के साथ बीटीए पर काफी गहन विमर्श हो रहा है। अमेरिका के अलावा भारत ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ मुक्त कारोबारी समझौता (एफटीए) करने के लिए बात कर रहा है। इन तीनों समझौतों का काफी व्यापक आर्थिक असर होगा।
एशिया सोसाइटी की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में जयशंकर ने कहा कि भारत पहली बार तीन बड़ी आर्थिक शक्तियों के साथ कारोबारी समझौता करने के लिए बातचीत कर रहा है। अभी तक भारत ने अपने भौगोलिक क्षेत्र के पूर्वी हिस्से में स्थित देशों (जापान, दक्षिण कोरिया, आसियान व आस्ट्रेलिया) के साथ ही मोटे तौर पर कारोबारी समझौता किया है।
पहले जिन देशों (जापान, दक्षिण कोरिया व आसियान) के साथ एफटीए किए गए, वे भारत के लिए प्रतिस्पर्द्धी भी रहे हैं और इन समझौतों का अनुभव भारत के लिए बहुत फायदे का नहीं रहा। लेकिन, अब जिन तीन देशों के साथ ट्रेड समझौते के लिए विमर्श शुरू हुआ है, वहां ज्यादा संभावनाएं हैं। इन देशों के साथ होने वाले समझौतों का ना सिर्फ बड़ा आर्थिक असर होगा, बल्कि दूसरे क्षेत्रों पर भी प्रभाव पड़ेगा।
ट्रंप के पहले कार्यकाल के अंत में भी भारत व अमेरिका के बीच एक सीमित दायरे वाले कारोबारी समझौते पर बातचीत काफी आगे बढ़ गई थी। अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से भारत पर पारस्परिक कर लगाने की बार-बार धमकी देने के बावजूद जयशंकर मानते हैं कि ट्रंप सरकार की नीतियां कई तरह से भारत के लिए लाभकारी होंगी।
पहला, राष्ट्रपति ट्रंप पूर्व की सरकारों से ज्यादा रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत के साथ सहयोग करने को तैयार हैं। इससे दोनों देशों के बीच बेहतर गुणवत्ता वाले रक्षा संबंध स्थापित होंगे।
दूसरा, नई अमेरिकी सरकार की ऊर्जा नीतियां भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए काफी सकारात्मक हैं। ट्रंप की नीतियां वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर बनाती हैं।
तीसरा, बड़ी प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर अमेरिका का बढ़ता फोकस भी भारत के लिए सही साबित होगा। बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां मोबलिटी व सप्लाई चेन की संवेदनशीलता को पहचानती हैं।