लालू यादव को लेकर सशंकित है कांग्रेस, लोकसभा जैसी हालत बिहार विधानसभा चुनाव में न हो जाए

बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने शनिवार को एम्स दिल्ली में जाकर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का हालचाल लिया। कांग्रेस के अंदर लालू को लेकर जिस तरह की आशंका है, उसमें यह जरूरी हो गया था।

बिहार विधानसभा चुनाव में अभी करीब सात महीने का समय है, लेकिन राजनीतिक आयोजन शुरू हो गए हैं। देश के गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह बिहार आकर लौट चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी महीने बिहार आ रहे हैं। लेकिन, उससे पहले 7 मार्च को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी बिहार आने वाले हैं। कांग्रेस जिले-जिले तक राहुल गांधी के दौरे के लिए भीड़ जुटाने में जुटी हुई है। इस बीच शनिवार को बिहार कांग्रेस के नए प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने दिल्ली एम्स में जाकर राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से उनका हालचाल लिया। वह भले भलमनसाहत लिए गए हों, लेकिन बिहार की राजनीति और लालू प्रसाद को ठीक से जानने वाले कांग्रेसी राजद अध्यक्ष को लेकर बुरी तरह सशंकित हैं।

तेजस्वी यादव में छूटे थे पसीने, लालू तो टेढ़ी खीर
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में जनता दल यूनाईटेड और भारतीय जनता पार्टी के बीच ‘बड़ा भाई-छोटा भाई’ की लड़ाई का मजा लेने वाले महागठबंधन के दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल को पता है कि यहां कौन बड़ा है। बीच में कांग्रेस ने तेवर दिखाने की कोशिश की थी, लेकिन फिर जगह पर आ गई। कांग्रेस नेताओं ने अलग-अलग तरह से बोलकर स्वीकार कर लिया कि बिहार में राजद ही बड़ा है। खैर, परेशानी यहां थी भी नहीं। परेशानी यह है कि कांग्रेस के लिए तेजस्वी यादव छोटी परेशानी और लालू प्रसाद तो बाकायदा टेढ़ी खीर हैं। जब 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों का जुटान हुआ था, तब कांग्रेस को तत्कालीन महागठबंधन सरकार में दो और मंत्रीपद चाहिए था। तब महागठबंधन के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस को तेजस्वी यादव से डील करने के लिए छोड़ दिया। सरकार चली गई, लेकिन कांग्रेस तेजस्वी यादव को मैनेज नहीं कर सकी। फिर लोकसभा चुनाव के पहले महागठबंधन से जनता दल यूनाईटेड अलग हो गया। लोकसभा चुनाव में नामांकन की तारीख आ गई, लेकिन कांग्रेस लालू प्रसाद यादव से डील नहीं कर सकी।

दिल्ली में राहुल गांधी के सामने इशारों में आई बात
कोर्ट में विचाराधीन कुछ मामलों में प्रगति के बीच लालू प्रसाद यादव को कंधे-हाथ पर जख्म, शुगर, बीपी आदि की परेशानी के साथ पटना से दिल्ली ले जाकर एम्स में भर्ती कराया गया है। वह अभी वहीं हैं। क्रिटिकल केयर यूनिट में रहते हुए भी उनका सोशल मीडिया हैंडल एक्टिव रहा और वक्फ बिल को लेकर उनकी तीखी प्रतिक्रिया आई तो बिहार के कांग्रेसियों को लोकसभा चुनाव याद आ गया। यह ऐसा डर है, जिसपर अभी कोई खुलकर बात नहीं कर रहा। हालांकि, दिल्ली में बिहार के 40 संगठन जिलो के अध्यक्ष-कार्यकारी अध्यक्ष की बैठक में राहुल गांधी के सामने यह डर इशारों जरूर सामने आया। कई जिलाध्यक्षों ने कहा कि कांग्रेस जहां से चुनाव लड़ेगी, उसकी जानकारी जल्दी दे दी जाए। दरअसल, इस बात ने लोकसभा चुनाव की याद दिला दी जब कांग्रेस देखती रह गई और लालू ने अपने हिसाब से सीटों पर राजद प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए सिम्बल दे दिया था।

लालू यादव रौ में रहे तो लोकसभा चुनाव वाला डर
बिहार में जब लालू प्रसाद यादव सत्ता में आए थे, तभी से कांग्रेस की भूमिका लगातार सिमटती गई। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं, तब भी कांग्रेस को लालू ने नियंत्रित किए रखा था। लेकिन, अब तो लंबे समय से कांग्रेस लालू के इशारे पर ही चलने को मजबूर है। कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार के आने के पहले अखिलेश प्रसाद सिंह थे तो यह बात और ज्यादा जोर से कही जाती थी। नए अध्यक्ष की लालू के सामने क्या चल सकेगी, यह भविष्य के गर्त में है। फिलहाल लोकसभा चुनाव 2024 वाला डर कमोबेश सभी कांग्रेसियों को याद आ रहा है। दिल्ली में कांग्रेस राजद और वामदलों के साथ बिहार की लोकसभा सीटों के बंटवारे की चर्चा ही करती रही थी, इधर लालू ने अपने प्रत्याशियों को चुनाव चिह्न बांटना शुरू कर दिया था।

सीट बंटवारे से पहले कांग्रेस की दावेदारी निबटा दी थी
लालू प्रसाद यादव ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और वामदलों से सीट बंटवारे के पहले ही अपने प्रत्याशियों को सिम्बल देना शुरू कर दिया था। कांग्रेस में तब नए-नए शामिल हुए राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव पूर्णिया लोकसभा सीट पर तैयारी करते ही रह गए थे और जदयू से इस्तीफा देकर आईं राज्य की पूर्व मंत्री बीमा भारती ने लालू के घर आकर इस सीट पर राजद का सिम्बल ले लिया। यह खबर खूब चर्चा में इसलिए भी रही कि कांग्रेस चाहकर भी पप्पू यादव के साथ नजर नहीं आई, हालांकि निर्दलीय उतर कर भी वह जीत गए। यह तो बाद के चुनावी चरण का मसला था। इसके पहले, शुरुआती चरण में भी जब सीट शेयरिंग का मामला दिल्ली में घूम रहा था, लालू ने घर बुलाकर गया से कुमार सर्वजीत, नवादा से श्रवण कुशवाहा, औरंगाबाद से अभय कुशवाहा, जमुई से अर्चना रविदास आदि को टिकट दे दिया।

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की अपील भी गई बेकार, नाम आते रहे
कांग्रेस से डील हुए बगैर ही उजियारपुर से आलोक मेहता, जहानाबाद से सुरेंद्र यादव, महाराजगंज से रणधीर सिंह, बक्सर से सुधाकर सिंह, सारण से रोहिणी आचार्या, पाटलिपुत्र से मीसा भारती, बांका से जय प्रकाश नारायण यादव, मुंगेर से कुमारी अनिता आदि का नाम घोषित कर दिया गया था। कई ने खुद ही सिम्बल मिलने की जानकारी दी थी। हालत यह थी कि तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को ऐसे कई नामों और तस्वीरों को देखने के बाद राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के पास जाकर अपील करनी पड़ी थी कि ऐसा नहीं करें, हालांकि उससे कोई अंतर नहीं पड़ा था। कांग्रेस सिर्फ ‘महागठबंधन के लिए यह अच्छा नहीं है’ बोलने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकी थी।

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