लोक सभा चुनाव: पंजाब में नई परिपाटी बनाएगी बदली सियासी बयार

पंजाब में लहलहाते खेतों के बीच बहते सियासी दरिया में वोट तलाश रहे राजनीतिक दलों का इस बार लोकसभा चुनाव में कड़ा इम्तिहान होगा। ये चुनाव कई मायनों में अलग होगा।
पंजाब की बदली सियासी बयार इस बार नई परिपाटी स्थापित करेगी। सूबे में लहलहाते खेतों के बीच बहते सियासी दरिया में वोट तलाश रहे राजनीतिक दलों का इस बार लोकसभा चुनाव में कड़ा इम्तिहान होगा। ये चुनाव कई मायनों में अलग होगा। साल 2014 में पंजाब के रास्ते पहली बार संसद पहुंची आम आदमी पार्टी के लिए यह पहला मौका होगा, जब वह राज्य की सत्ता में रहते हुए लोकसभा चुनाव में उतरेगी।
सत्तारूढ़ आप सियासी फसल काटने को बेताब है, लेकिन उसे दो साल के काम व चुनावी वादों का हिसाब देना होगा। पिछले चुनाव में 13 में से आठ सीटें झोली में डालने वाली कांग्रेस के सामने बिखराव के बीच गढ़ बचाने की बड़ी चुनौती है। लगभग चार साल पहले कृषि कानूनों के विरोध में एनडीए से नाता तोड़ने वाला शिरोमणि अकाली दल पंजाब में भाजपा से गठबंधन के लिए फिर कदमताल कर रहा है, लेकिन उसके रास्ते में एमएसपी पर कानूनी गारंटी मांग रहे किसान खड़े हैं। शिअद के लिए स्थितियां पहले जैसी नहीं हैं। भाजपा पीएम मोदी के नाम पर उपजाऊ सूबे में कमल खिलाने के प्रयास में है, पर हवा के विपरीत सियासी रुख दिखाते रहे पंजाब में उसकी राह आसान नहीं है।
भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए चंडीगढ़ व हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों में एक-दूसरे से गलबहियां डाल रहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पंजाब में मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में एक-दूसरे के सामने हैं। साल 2014 में मोदी लहर के बीच पंजाब से चार सीटें जीतने वाली आप को 2019 में एक सीट ही मिली थी, पर 2022 के विधानसभा चुनाव में उसने 42.01 फीसदी वोटों के साथ 92 सीटें झोली में डालकर एकतरफा जीत हासिल की थी। ऐसे में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार स्थितियां अलग हैं। सूबे में सत्तारूढ़ आप पंजाब से संसद के लिए लंबी लकीर खींचने के प्रयास में है। यही कारण है कि ‘संसद में भी भगवंत मान’ नारे के साथ पंजाब में चुनाव अभियान लाॅन्च करने वाली आप ने पांच मंत्रियों को ही लोकसभा के दंगल में उतार दिया है।
कांग्रेस के ‘अस्त्रों’ से उसी पर वार की तैयारी
पिछले चुनाव में देशभर में भाजपा के शानदार प्रदर्शन के बीच पंजाब में कांग्रेस ने 8 सीटें जीतीं थीं, लेकिन 2022 में पंजाब की सत्ता से बेदखल होते ही कांग्रेस के कई नेताओं ने पार्टी से किनारा कर लिया। दो साल में कांग्रेस के बीस से ज्यादा बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। इस चुनाव में भाजपा व आप जैसे दल कांग्रेस के इन्हीं अस्त्रों से उस पर वार करने को तैयार हैं। पंजाब में कांग्रेस का चेहरा रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह व सुनील जाखड़ अब भाजपा की कमान संभाल रहे हैं। आप ने कांग्रेस से आए रिंकू को जालंधर व जीपी को फतेहगढ़ से टिकट थमा दिया है। होशियारपुर में भी कांग्रेस विधायक दल के उपनेता डाॅ. राजकुमार चब्बेवाल को पार्टी शामिल करवाकर होशियारपुर से उतारने की तैयारी है।
किसमें कितना है दम…
आम आदमी पार्टी
ताकत: 2022 में सत्ता में आने के बाद भगवंत मान सरकार अब तक पूरे किए गए वादों का लाभ उठाएगी। प्रदेश में सत्तासीन होने का फायदा हो सकता है।
कमजोरी: विपक्ष ने कानून-व्यवस्था को लेकर आप पर निशाना साधा है। मूसेवाला की हत्या एक भावनात्मक मुद्दा है। सरकार महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये भत्ता देने के चुनावी वादे को पूरा नहीं कर पाई है।
शिरोमणि अकाली दल
ताकत: शिओमणि अकाली दल ऐसे मुद्दे उठाता है जो बहुसंख्यक सिखों और किसानों से जुड़े हैं।
कमजोरी: शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में सीमित वोट आधार। पार्टी पर बड़े पैमाने पर एक ही परिवार, बादल का नियंत्रण है। इससे अतीत में दरारें पैदा हुई हैं।
भारतीय जनता पार्टी
ताकत: भाजपा के पास अब पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह समेत कई सिख चेहरे हैं। राष्ट्रवाद और केंद्र सरकार के विकास कार्यों के साथ प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा।
कमजोरी: ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित समर्थन आधार। किसान आंदोलन से उपजा रोष भारी पड़ सकता है।
कांग्रेस
ताकत: शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पार्टी का आधार है। परंपरागत वोट बैंक भी मजबूत।
कमजोरी: अंदरूनी कलह, गुटबाजी व बिखराव के इलावा कई नेता कर चुके हैं पार्टी से किनारा।