1965 में भारत के खिलाफ लड़ी जंग, अब बांग्लादेश ने बताया अपनी आजादी का ‘हीरो’

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने नई बहस छेड़ दी है। अब देश के नए सिलेबस में पढ़ाया जाएगा कि बांग्लादेश को आजादी शेख मुजीबुर्रहमान ने नहीं बल्कि जियाउर रहमान ने दिलाई थी। बांग्लादेश में मुजीब को बंगबंधु के नाम से जाना जाता है।

वे पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता हैं। उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि भी मिली है। मगर मोहम्मद यूनुस की सरकार इस उपाधि को भी छीनने जा रही है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि जियाउर रहमान कौन थे? बांग्लादेश के निर्माण में उनकी क्या भूमिका रही…

बागबारी में हुआ जियाउर रहमान का जन्म

जियाउर रहमान का जन्म 19 जनवरी 1936 को बंगाल के बागबारी में हुआ था। जिया 1977 से 1981 तक बांग्लादेश के राष्ट्रपति भी रहे। जियाउर रहमान को प्यार से जिया कहा जाता था। उनके पिता मंसूर रहमान एक रसायनज्ञ थे। जिया का बचपन कोलकाता और बोगरा में बीता।

भारत के विभाजन के बाद मंसूर रहमान को कराची भेज दिया गया। इसके बाद जिया को अपनी आगे की पढ़ाई कराची में करनी पड़ी। बांग्लादेश की आजादी के वक्त जिया मेजर के पद पर तैनात थे। बाद में उन्हें मुक्ति का सेक्टर कमांडर बनाया गया। 1971 में बांग्लादेश को आजादी मिली। अगले साल 1972 में जियाउर रहमान को कर्नल के तौर पर पदोन्नति मिली।

भारत के खिलाफ लड़ी जंग
जियाउर रहमान ने 1952 में माध्यमिक शिक्षा पूरी की। 1953 में कराची के डीजे कॉलेज में प्रवेश लिया। इसी साल जिया ने एक कैडेट के तौर पर काकुल स्थित पाकिस्तान सैन्य अकादमी ज्वाइन की। दो साल बाद 1955 में उन्हें सेकंड लेफ्टिनेंट के तौर पर कमीशन मिला।

करीब पांच साल तक जिया ने पाकिस्तान सेना के खुफिया विभाग में भी काम किया। साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ गई। इस जंग में खेमकरण सेक्टर में जियाउर रहमान ने भारत के खिलाफ जंग लड़ी।

पाक ने किया मानवसंहार तो सेना से किया विद्रोह
25 मार्च 1971 को पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ के नाम से बांग्लादेश में मानवसंहार किया। इसी दिन मेजर जियाउर रहमान ने पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह कर दिया। 26 मार्च को जियाउर रहमान ने चटगांव के कलुरघाट रेडियो स्टेशन से आजादी का एलान किया। उनके बोले थे, “मैं मेजर जिया, बांग्लादेश मुक्ति सेना का प्रोविजनल कमांडर-इन-चीफ… बांग्लादेश की आजादी की घोषणा करता हूं।” अब मोहम्मद यूनिस की सरकार इसी घोषणा के आधार पर जिया को आजादी का क्रेडिट दे रही है।

बीर उत्तम पुरस्कार भी मिल चुका
विद्रोह के दौरान जियाउर रहमान और उनके सैनिकों ने मुक्ति सेना की मदद की और चटगांव और नोआखली में अपना नियंत्रण कर लिया। बांग्लादेश की आजादी में अहम योगदान के आधार पर जियाउर रहमान को बांग्लादेश के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘बीर उत्तम’ से नवाजा गया।

मुजीब की हत्या के बाद बड़ी जिया की ताकत
पाकिस्तान से आजादी मिलने के बाद बांग्लादेश अलग देश बना तो शेख मुजीबुर्रहमान पहले राष्ट्रपति बने। 7 मार्च 1973 को मुजीब पहली बार बांग्लादेश के प्रधानमंत्री बने। मगर दो साल बाद 1975 में बांग्लादेश को सैन्य तख्तापलट का सामना करना पड़ा। सैन्य विद्रोह में शेख मुजीब, उनकी पत्नी और तीन बेटों की हत्या कर दी गई। नए राष्ट्रपति खुंदकार मुश्ताक अहमद ने पद संभाला। उन्होंने जिया को सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी।

यह भी जानें
आजादी के बाद कोमिला में ब्रिगेड कमांडर बने जियाउर रहमान।
1972 में बांग्लादेश के सशस्त्र बलों का डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ बनाया गया।
1973 में ब्रिगेडियर और बाद में मेजर जनरल बने।
25 अगस्त 1975 को जियाउर रहमान को सेना प्रमुख बनाया गया।
7 नवंबर 1975 को जियाउर रहमान को दोबारा सेना प्रमुख बनाया गया।

तख्तापलट के बाद दोबारा मिली सेना की कमान
3 नवंबर 1975 को ब्रिगेडियर खालिद मुशर्रफ और कर्नल शफात जमील के नेतृत्व में ढाका ब्रिगेड ने दोबारा तख्तापलट किया। इस दौरान जिया को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद 7 नवंबर को कर्नल अबू ताहिर और वामपंथी जातीय समाजतांत्रिक दल के समर्थकों के एक समूह ने तीसरा तख्तापलट किया गया। इसमें ब्रिगेडियर खालिद मुशर्रफ की हत्या कर दी गई और कर्नल जमील को गिरफ्तार कर लिया गया। कर्नल ताहिर ने जियाउर रहमान को रिहा कर दिया और उन्हें दोबारा सेना प्रमुख बनाया गया।

जब मार्शल लॉ प्रशासक बने जिया
बांग्लादेश में मार्शल लॉ लगा दिया। न्यायमूर्ति एएसएम सईम को मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक बनाया गया। मेजर जनरल जिया को उप मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक बनाया गया। मगर बाद में न्यायमूर्ति सईम के इस्तीफे के बाद जियाउर रहमान को 19 नवंबर 1976 को मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक बनाया गया। 21 अप्रैल 1977 को राष्ट्रपति अबू सदात मोहम्मद सईम ने स्वास्थ्य कारणों से पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जिया बांग्लादेश के छठवें राष्ट्रपति बने।

पहले निर्वाचित राष्ट्रपति
1 सितंबर 1978 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का गठन किया। इसके वे पहले अध्यक्ष बने। फरवरी 1979 में देश के दूसरे संसदीय चुनाव में बीएनपी ने 300 में से 207 सीटों पर जीत हासिल। पार्टी को 76 फीसदी वोट मिले। वे बांग्लादेश के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति बने। जिया ने अपने शासल काल में इस्लाम की शिक्षा को भी स्कूलों में अनिवार्य किया गया। बांग्लादेश में उनके शासनकाल में हिंसा और उग्रवाद की घटनाओं में इजाफा हुआ था।

खालिदा जिया से की शादी
1960 में जिया की शादी खालिदा जिया के संग हुई। खालिदा जिया दो बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं। शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद जिया को मोहम्मद यूनुस की सरकार ने जेल से रिहा किया।

एक तबादले ने की करवाई हत्या
25 मई को जिया ने चटगांव जाने का फैसला किया। इसी दिन चटगांव के जीओसी मेजर जनरल मोहम्मद अबुल मंजूर का ढाका तबादला कर दिया गया। बताया जाता है कि मंजूर को यह तबादला पसंद नहीं आया। इसके अलावा राष्ट्रपति कार्यालय ने यह भी कहा कि जिया के पहुंचने पर वे एयरपोर्ट पर न मौजूद रहे। मंजूर ने इस निर्देश को अपनी बेइज्जती के तौर लिया, क्योंकि वे चटगांव के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी थे।

आग बबूला हो उठा था मोती
29 मई को जिया चटगांव की यात्रा पर पहुंचे। मेजर जनरल अबुल मंजूर के पास दोस्त लेफ्टिनेंट कर्नल मोतीउर रहमान को जब तबादला की जानकारी मिली तो वह आग बबूला हो उठा। इसके बाद मोती ने 29 मई को ही जिया की हत्या की साजिश रचने की कोशिश की।

सैन्य छावनी में रची गई साजिश
29 मई को जिया ने चटगांव सर्किट हाउस में कई बैठकें की। इसके बाद रात में सोने चले गए। दूसरी तरफ सैन्य छावनी में उनकी हत्या की साजिश रची जा रही थी। सबसे पहले 112 सिग्नल के मेजर मारूफ रशीद ने ढाका से संचार लिंक को तोड़ा।रात को कर्नल मोती ने सैन्य अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक में सभी ने जिया को मारने की कसम खाई।

सुबह कमरे से निकले तो गोलियों से हुआ स्वागत
हत्याकांड को अंजाम देने की खातिर तीन टीमों का गठन किया गया। मूसलाधार बारिश के बीच दो टीमें सर्किट हाउस में दाखिल होती हैं। एक टीम सर्किट हाउस के बाहर अल्मास सिनेमा के पास तैनात होती है। मोती को जानकारी मिली की जिया कमरा नंबर 9 में ठहरे हैं। इसके बाद हत्या की जिम्मेदारी फज्ले होसैन और कैप्टन सत्तार को दी गई।
ग्रेनेड हमलों और गोलियों क तड़तड़ाहट से सर्किट हाउस में अफरा-तफरी मच जाती है। राष्ट्रपति जिया नौ की जगह कमरा नंबर चार पर ठहरे थे। 30 मई की सुबह जगह के बाद वह जैसे ही बाहर आते हैं, उनका सामना विद्रोहियों से होता। सैन्य विद्रोही पूरी मशीन गन उन पर खाली कर देते हैं।

आजादी के एलान पर मतभेद
बांग्लादेश को आजादी किसने दिलाई… इसको लेकर मतभेद हैं। शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग के समर्थकों का मानना है कि शेख मुजीबुर्रहमान ने आजादी का एलान किया था। मुजीब के आदेश पर ही जियाउर रहमान ने आजादी की घोषणा। मगर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के समर्थकों का मानना है कि जियाउर रहमान ने खुद ही आजादी की घोषणा की थी।

33 पुस्तकों में किया गया बदलाव
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने 1 से 9 कक्षा तक के पाठ्यक्रम में बदलाव किया है। इन कक्षाओं के किताबों से मुजीबुर्रहमान को मिली ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि हटा ली गई है। पाठ्यक्रम में कहा कि गया कि 26 मार्च 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की आजादी का एलान किया। जानकारी के मुताबिक कुल 33 किताबों के पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया है।

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