मध्य प्रदेश: विजयपुर-बुधनी में भाजपा-कांग्रेस के लिए ‘इज्जत’ की लड़ाई
मध्य प्रदेश उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए यह इज्जत की लड़ाई है। दोनों ही पार्टियां यहां गढ़ बचाने की लड़ रही है। भाजपा का दो दशक से बुधनी पर कब्जा है, वही कांग्रेस का गढ़ विजयपुर रहा है।
मध्य प्रदेश में दो सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे शनिवार को आ जाएंगे। इन नतीजों से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। भाजपा और कांग्रेस के लिए यह इज्जत की लड़ाई है। दोनों ही पार्टियां यहां गढ़ बचाने की लड़ रही है। भाजपा का दो दशक से बुधनी पर कब्जा है, वही कांग्रेस का गढ़ विजयपुर रहा है। लेकिन विजयपुर में परिस्थिति बदल गई है, छह बार के विधायक रामनिवास रावत अब बीजेपी में आ गए हैं। कांग्रेस से वही जीतते रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश है कि इस सीट को बचाए रखे। आइए आपको दोनों सीटों का समीकरण समझाते हैं।
बुधनी कैसे रहा है बीजेपी का गढ़
बुधनी विधानसभा क्षेत्र में अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं, जिनमें से 11 बार भाजपा ने जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस सिर्फ 5 बार ही विजयी हुई है। इस सीट पर पहली बार 1957 में चुनाव हुआ था, जिसमें कांग्रेस की राजकुमारी सुराज काला ने जीत हासिल की थी। खास बात यह है कि यहां अब तक तीन बार उपचुनाव हुए हैं और सभी शिवराज सिंह चौहान के कारण हुए। इन तीनों उपचुनावों में कांग्रेस ने राजकुमार पटेल को मैदान में उतारा, जो किरार समाज से आते हैं, जिसे क्षेत्र का निर्णायक वोट बैंक माना जाता है। पिछले दो उपचुनाव में पटेल 1992 में भाजपा के मोहनलाल शिशिर से 580 वोटों से और 2006 के उपचुनाव में शिवराज सिंह चौहान से 36,500 वोटों से हार गए थे। 1962 में एक बार इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने भी जीत दर्ज की थी।
बुधनी में क्यों उपचुनाव
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के विदिशा से सांसद चुनने बाद बुधनी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। इसी के चलते बुधनी विधानसभा सीट खाली हो गई थी। भाजपा ने पूर्व सांसद रमाकांत भार्गव और कांग्रेस ने पूर्व मंत्री राजकुमार पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया है। राजकुमार पटेल 1993 में बुधनी सीट से चुनाव जीत चुके है। 1998 के बाद से कांग्रेस इस सीट पर कोई चुनाव नहीं जीती है। पिछले छह चुनाव लगातार भाजपा जीतते आ रही है।
समीकरण क्या
बुधनी सीट पर भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला है। भाजपा ने ब्राह्मण और कांग्रेस ने करार समाज से प्रत्याशी पर दांव लगाया है। किरार समाज का निर्णायक वोट बैंक है। अभी तक किरार समाज किरार समाज से आने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ जाता रहा है। अब इस बार देखना होगा कि यह वोट बैंक किसे मिलता है। इस सीट पर ब्राह्मण और ओबीसी मतदाओं का रूख महत्वपूर्ण होगा।
भाजपा कांग्रेस ने खूब झोंकी ताकत
बुधनी सीट पर भाजपा प्रत्याशी रमाकांत भार्गव को टिकट देने को लेकर भाजपा में नाराजगी देखने को मिली थी। भाजपा नेतआों की नाराजगी का पार्टी को कुछ नुकसान हो सकता है। हालांकि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने बुधनी में दो दर्जन से छोटी बड़ी सभाएं की। कई जातिगत समीकरणों को देखते हुए मंत्रियों को मैदान में उतारा। वहीं, कांग्रेस ने भी प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह समेत कई नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
विजयपुर रहा है कांग्रेस का गढ़
विजयपुर में कांग्रेस से भाजपा में विधायक रामनिवास रावत के शामिल होने के बाद उपचुनाव हो रहे है। भाजपा ने उनको कैबिनेट मंत्री बनाया है। 6 बार के विध्रायक वत कांग्रेस की सरकार में भी मंत्री रह चुके है। यह सीट पिछले चुनाव में भाजपा की लहर के बावजूद रावत कांग्रेस की टिकट पर जीत गए थे। 1998 और 2018 के चुनाव छोड़ दे तो 1990 से 2023 तक आठ चुनाव में 6 बार कांग्रेस ने विजयपुर सीट पर जीत दर्ज की है। इस पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही विकास और कल्याणकारी योजनाओं को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा है।
दोनों दलों के लिए विजयपुर बना प्रतिष्ठा का विषय
श्योपुर की विजयपुर विधानसभा आदिवासी बहुल सीट है। यहां पर भाजपा ने रामनिवास रावत और कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग से आने वाले मुकेश मल्होत्रा को मैदान में उतारा है। भाजपा ने रावत को दल बदल के बाद मंत्री बनाया है। वहीं, कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग से आने वाले मुकेश मल्होत्रा को मैदान में उतरा है। यह दोनों उम्मीदवार एक दूसरे के खिलाफ पहले भी चुनाव लड़ चुके है। अब दोनों ही दल बदलकर एक दूसरे के आमने सामने है। इस सीट पर आदिवासी वोटरों 60 हजार के आसपास है। वहीं, कुशवाह समाज के भी 30 हजार वोट है। दोनों ही समाज का झुकाव कांग्रेस की तरफ है।
सीट बचाए रखने पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का बढ़ेगा हौसला
विजयपुर चुनाव का परिणाम आदिवासी वोटरों पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। यदि यह वोट कांग्रेस की तरफ एक तरफा गिरता है तो भाजपा के लिए चुनौती बढ़ सकती है। वहीं, यदि वोट दोनोंं पार्टी में बटता है तो कांंग्रेस के लिए गढ़ बचाना मुश्किल हो सकता है। यदि कांग्रेस यह सीट बचाने में कामयाब होती है तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हौंसला बढ़ेगा। साथ ही जीत पटवारी की पार्टी में स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। वहीं, भाजपा के लिए रामनिवास रावत को पार्टी में लाने पर सवाल खड़े होंगे।