सीएम मान द्वारा पंजाब को सिंधु नदी के जल में से न्यायोचित हिस्सा देने की मांग

मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने आज फिर स्पष्ट शब्दों में कहा कि पंजाब के पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए एक बूंद भी अतिरिक्त पानी नहीं है। इसके साथ ही, मुख्यमंत्री ने सिंधु नदी के पानी में हिस्सा मांगने के साथ-साथ सतलुज यमुना लिंक (एस.वाई.एल.) नहर के बजाय यमुना सतलुज लिंक (वाई.एस.एल.) नहर का विचार भी प्रस्तुत किया।
आज यहां श्रम शक्ति भवन में एक बैठक में हिस्सा लेते हुए मुख्यमंत्री ने दोहराया कि पंजाब के पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है, इसलिए एक बूंद भी साझा करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। उन्होंने फिर कहा कि पंजाब के पास अतिरिक्त पानी नहीं है और अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार राज्य में पानी की उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन कराने की आवश्यकता है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि राज्य के अधिकांश ब्लॉक पहले ही खतरे की कगार पर पहुंच चुके हैं और राज्य में भूजल की स्थिति गंभीर हालत में है।
इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के कई नदी स्रोत सूख चुके हैं, जिसके कारण सिंचाई जरूरतों को पूरा करने के लिए और पानी की आवश्यकता है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि पंजाब के पास बहुत कम पानी है, जो किसानों को फसल उगाने के लिए दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब पंजाब खुद ऐसी स्थिति का सामना कर रहा हो, तो किसी अन्य राज्य को एक बूंद भी अतिरिक्त देने का सवाल ही पैदा नहीं होता। इस दौरान मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव रखा कि सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और पश्चिमी नदियों से पानी लाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए ताकि पानी की मांग को पूरा किया जा सके।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सिंधु जल संधि को स्थगित करने के अवसर का उचित उपयोग किया जाना चाहिए ताकि राज्य की पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सके। उन्होंने कहा कि भारत सरकार के हालिया फैसले ने भारत से सटी पश्चिमी नदियों (सिंधु, जेहलम और चिनाब) से पानी का अधिकतम उपयोग करने की बड़ी संभावनाएं पैदा की हैं। इस दौरान भगवंत सिंह मान ने कहा कि पंजाब इस समय भूजल के गिरते स्तर की समस्या से जूझ रहा है, इसलिए राज्य को नदी जल के उपयोग, प्रवाह और वितरण के लिए भविष्य की रणनीतियों में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पश्चिमी नदियों का पानी प्राथमिकता के आधार पर पंजाब को दिया जाना चाहिए और हिमाचल प्रदेश में मौजूदा भाखड़ा और पौंग बांधों के ऊपर नए जलाशय बांध बनाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे पश्चिमी नदी जल के भंडारण और नियमन में काफी वृद्धि होगी। भगवंत सिंह मान ने कहा कि यह समय की मांग है कि पंजाब को उचित मुआवजा दिया जाए, जिसने देश को अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए पानी और उपजाऊ भूमि जैसे अनमोल प्राकृतिक संसाधनों को भी दांव पर लगा दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि लंबे समय से चल रहे शारदा-यमुना लिंक प्रोजेक्ट को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाना चाहिए और अतिरिक्त पानी को उचित स्थान पर यमुना नदी में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे उपलब्ध अतिरिक्त पानी हरियाणा की रावी-ब्यास व्यवस्था से पानी के संतुलन की जरूरत को पूरा कर सकता है, साथ ही दिल्ली की लगातार बढ़ती पेयजल जरूरत और राजस्थान को यमुना के पानी की उपलब्धता को पूरा कर सकता है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि उपरोक्त परिस्थितियों के अनुसार एस.वाई.एल नहर के निर्माण के मुद्दे को टाला जा सकता है और इसे हमेशा के लिए त्याग दिया जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरियाणा की मांगों को पूरा करने के लिए शारदा-यमुना लिंक का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि शारदा के अतिरिक्त पानी को यमुना नदी में स्थानांतरित किया जा सके और चिनाब के पानी को रोहतांग सुरंग के माध्यम से ब्यास नदी में मोड़ा जा सके, ताकि एस.वाई.एल नहर की आवश्यकता को समाप्त किया जा सके। उन्होंने कहा कि एस.वाई.एल मामले (ओ.एस नंबर-6 ऑफ 1996) के संबंध में कार्यवाही को तब तक स्थगित रखा जा सकता है जब तक रावी-ब्यास ट्रिब्यूनल का फैसला नहीं आ जाता। भगवंत सिंह मान ने कहा कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के बीच यमुना के पानी के वितरण के 12 मई, 1994 के समझौते की समीक्षा 2025 के बाद की जा रही है।
मुख्यमंत्री ने मांग की कि पंजाब को यमुना के पानी के वितरण में हिस्सेदार राज्य के रूप में शामिल किया जाए और यमुना के पानी का वितरण करते समय शारदा-यमुना के 60 प्रतिशत पानी को पंजाब के लिए विचार किया जाए। उन्होंने कहा कि सतलुज यमुना लिंक (एस.वाई.एल) नहर के बजाय इस प्रोजेक्ट को अब यमुना सतलुज लिंक (वाई.एस.एल) के रूप में पुनर्विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि सतलुज नदी पहले ही सूख चुकी है और इसमें से एक बूंद भी पानी साझा करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। भगवंत सिंह मान ने कहा कि गंगा और यमुना का पानी सतलुज नदी के माध्यम से पंजाब को आपूर्ति किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि एस.वाई.एल नहर एक ‘भावनात्मक मुद्दा’ है। पंजाब की कानून व्यवस्था के लिए यह गंभीर मुद्दा होगा और यह राष्ट्रीय समस्या बन जाएगा, जिसका खामियाजा हरियाणा और राजस्थान को भी भुगतना पड़ेगा। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि एस.वाई.एल नहर के लिए आज तक जमीन भी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि तीन नदियों के 34.34 एमएएफ पानी में से पंजाब को केवल 14.22 एमएएफ पानी आवंटित किया गया था, जो 40 प्रतिशत है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि बाकी 60 प्रतिशत हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान को आवंटित किया गया था, हालांकि इनमें से कोई भी नदी वास्तव में इन राज्यों से होकर नहीं बहती।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरियाणा को पहले ही पंजाब की रावी, ब्यास और सतलुज नदियों से कुल 5.95 एमएएफ (रावी-ब्यास से 1.62 एमएएफ और सतलुज से 4.33 एमएएफ) पानी मिल रहा है। उन्होंने कहा कि रावी, ब्यास और सतलुज के अलावा हरियाणा को यमुना से 4.65 एमएएफ और शारदा यमुना लिंक के माध्यम से शारदा से 1.62 एमएएफ पानी मिल रहा है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि नहरी पानी की कमी के कारण पंजाब में भूजल पर निर्भरता बढ़ी है, जिसके कारण पंजाब के कुल 153 में से 115 जोन (75 प्रतिशत) को अत्यधिक पानी निकालने वाला घोषित किया गया है, जबकि हरियाणा के केवल 61 प्रतिशत (143 में से 88) जोन में ही अत्यधिक पानी निकाला जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब में ट्यूबवेलों की संख्या 1980 के छह लाख से बढ़कर 2018 में 14.76 लाख (केवल कृषि ट्यूबवेल) हो गई और पिछले 35 वर्षों में इसमें 200 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि पंजाब में देश की तुलना में 157 प्रतिशत अधिक पानी भूजल से निकाला जाता है, जो राजस्थान (150 प्रतिशत) से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि पंजाब ने अपनी जरूरतों को भी नजरअंदाज किया और 60 प्रतिशत पानी गैर-रिपेरियन राज्यों को दे दिया, जहां से रावी-ब्यास और सतलुज नदियां गुजरती भी नहीं हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि पंजाब ने 2024 के दौरान देश के अनाज भंडार में 124.26 लाख मीट्रिक टन का योगदान दिया, जो भारत भर में 47 प्रतिशत है, जबकि पंजाब केंद्रीय पूल में 24 प्रतिशत चावल भी देता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब की पानी की कुल आवश्यकता 52 एमएएफ है और राज्य को सभी स्रोतों से केवल 26.75 एमएएफ पानी मिलता है, जिसमें 12.46 एमएएफ नहरी पानी और 14.29 एमएएफ भूजल है। उन्होंने कहा कि पंजाब की नदियों का पानी पड़ोसी राज्यों के साथ बांटा गया है, जबकि बाढ़ के समय नुकसान केवल पंजाब में होता है, जिससे हर साल पंजाब पर भारी वित्तीय बोझ पड़ता है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि जब पड़ोसी राज्यों के साथ तय सीमा के अनुसार पानी बांटा जाता है, तो बाढ़ के कारण होने वाली तबाही के लिए भी पड़ोसी राज्यों को सालाना आधार पर पंजाब को उचित मुआवजा देना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इन समझौतों और ट्रिब्यूनलों के फैसलों की बदलते हालात और पर्यावरणीय बदलावों के संदर्भ में समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मानक भी हर 25 साल बाद समीक्षा के लिए बाध्य करते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे हरियाणा रावी-ब्यास के पानी पर अपना हक समझता है, वैसे ही पंजाब यमुना के पानी पर अपना हक समझता है, क्योंकि भारत सरकार के सिंचाई आयोग की 1972 की रिपोर्ट में पंजाब को यमुना नदी का रिपेरियन राज्य बताया गया है। भगवंत सिंह मान ने अफसोस जताया कि भारत सरकार का तर्क है कि पंजाब पुनर्गठन अधिनियम-1966 यमुना नदी के बारे में चुप है, क्योंकि इन पानी को पंजाब और हरियाणा के बीच बांटने योग्य नहीं माना गया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी तरह यह अधिनियम रावी के पानी के बारे में भी चुप है। उन्होंने कहा कि पंजाब ने पहले ही रावी-ब्यास के अतिरिक्त पानी के संबंध में 1981 में बने समझौते को रद्द कर ‘पंजाब समझौता रद्द अधिनियम, 2004’ के तहत निरस्त कर चुका है। उन्होंने कहा कि राज्य ने ‘पंजाब समझौता रद्द अधिनियम, 2004’ की धारा-5 के तहत रावी-ब्यास के पानी के हरियाणा द्वारा उपयोग को बरकरार किया। भगवंत सिंह मान ने बताया कि पंजाब से पाकिस्तान की ओर कोई पानी नहीं छोड़ा जा रहा और पाकिस्तान में जो पानी पहुंच रहा है, वह जम्मू-कश्मीर से निकलने और बहने वाली उज्ज नदी के माध्यम से पहुंचता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इन सभी कारणों की रोशनी में यह जरूरी है कि यमुना-सतलुज लिंक नहर का निर्माण किया जाए ताकि पंजाब की पानी की जरूरत पूरी हो सके। उन्होंने कहा कि हरियाणा के पास अतिरिक्त पानी है, क्योंकि हरियाणा को घग्गर, टांगरी नदी, मारकंडा नदी, सरस्वती नदी, चौतांग-राकशी, नई नाला, साहबी नदी, कृष्णा धौन और लंडोहा नाला से 2.703 एमएएफ पानी मिल रहा है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि राज्यों के बीच पानी के वितरण का फैसला करते समय इस पानी को ध्यान में नहीं रखा गया।