विश्व जल दिवस: थार रेगिस्तान की गोद में सहेजी जा रही रजत बूंदें

थार रेगिस्तान में पीने के पानी को अमूल्य माना जाता है, लेकिन रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पानी जुटाना यहां एक कठिन चुनौती थी। हालांकि वेदांता की नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर प्रिया अग्रवाल की एक पहल से ये मुश्किलें आसान हो गई हैं।

तपती धूप और मीलों तक फैले रेतीले विस्तार के बीच थार रेगिस्तान में पीने के पानी को अमूल्य माना जाता है। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा के नजदीक स्थित बाड़मेर के रोहिड़ी गांव में रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पानी जुटाना एक कठिन चुनौती थी। लेकिन नवाचारों और सामूहिक प्रयासों के चलते अब यहां मानव और पशुओं को पेयजल सहज रूप से उपलब्ध हो रहा है।

वेदांता की नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर प्रिया अग्रवाल ने दो साल पहले बाड़मेर प्रवास के दौरान रोहिडी गांव का दौरा किया। उन्होंने देखा कि यहां की महिलाएं हर दिन 2 से 4 किलोमीटर पैदल चलकर सैकड़ों फीट गहरे कुएं से पानी खींचती हैं। यह उनकी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बन चुका था।

इस समस्या के समाधान के लिए जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, राजस्थान सरकार और केयर्न ऑयल एंड गैस ने मिलकर प्रयास किए। जल उपस्थिति की मैपिंग कर नवीन तकनीक के माध्यम से गांव के निकट तक पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की गई।

अब इन प्रयासों से न केवल ग्रामीणों को, बल्कि पशुओं को भी आसानी से पानी मिल रहा है। बाड़मेर जिले में अब तक 16 बोरवेल बनाए जा चुके हैं, जिससे 3,200 से अधिक घरों को जलापूर्ति हो रही है। काउ का खेड़ा, बांदरा, नेहरो का वास, निम्बलकोट और दौलतपुरा जैसे गाँवों में स्थायी जल स्रोतों की स्थापना से महिलाओं का श्रम भी कम हुआ है।

इसके अतिरिक्त, केयर्न ने 25 खडीनों का निर्माण कर पारंपरिक जल संरक्षण प्रणाली को पुनर्जीवित किया है। इससे भूमि की नमी बरकरार रहती है और भूजल स्तर में भी सुधार हो रहा है। इससे किसानों को अधिक उपजाऊ मिट्टी और बेहतर फसल उगाने के अवसर मिल रहे हैं। यह पहल केवल पानी की उपलब्धता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीणों के जीवट, पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक के समन्वय की सफलता की कहानी भी है।

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