बुलंदशहर हिंसा में शहीद हुए इंस्पेक्टर सुबोध के बेटे बेहद दुखी और गुस्से में हैं। उनका कहना है कि जिस पिता ने उन्हें ऐसा इंसान बनने की सलाह दी जो धर्म के नाम पर न लड़े, उस पिता की हिंदू-मुस्लिम लड़ाई में ही मौत हो गई।
बुलंदशहर के स्याना तहसील के गांव महाव में सोमवार सुबह गोवंश अवशेष मिलने पर पुलिस, हिंदूवादी संगठनों और ग्रामीणों में जमकर टकराव हुआ। गुस्साए ग्रामीणों ने चिंगरावठी चौकी के पास सड़क पर जाम लगा दिया। स्याना थाने के कोतवाल इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह ने मौके पर पहुंचकर जाम खुलवाने की कोशिश की तो ग्रामीणों ने पथराव कर दिया।
भीड़ ने चौकी के बाहर खड़े पुलिस के दर्जनों वाहनों में आग लगा दी। चौकी में घुसकर तोड़फोड़ की और सामान को आग लगा दी। हालात बेकाबू होते देख पुलिस ने हवाई फायरिंग की। इस पर ग्रामीणों ने सुबोध कुमार पर हमला बोल दिया। घटना में गोली लगने से कोतवाल सुबोध और एक युवक सुमित की मौत हो गई।
इंस्पेक्टर के शहीद होने की जानकारी मिलते ही परिजनों के साथ गांव में कोहराम मच गया। शहीद के परिजन बुलंदशहर रवाना हो गए। पिता की मौत के बाद इंस्पेक्टर को पुलिस विभाग में तैनाती मिली थी।
पिता की मौत से उनके दोनों बेटे बेहद दुख और गुस्से में हैं। उनका कहना है कि जिस पिता ने उन्हें ऐसा इंसान बनने की सलाह दी जो धर्म के नाम पर न लड़े, उस पिता की हिंदू-मुस्लिम लड़ाई में ही मौत हो गई।
मंगलवार सुबह पुलिस लाइन में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को श्रद्धांजलि दी गई। इंस्पेक्टर के बेटे अभिषेक ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि, मेरे पिता चाहते थे कि मैं एक अच्छा नागरिक बनूं जो समाज में धर्म के नाम पर हिंसा नहीं फैलाता। आज मेरे पिता ने हिंदू-मुस्लिम के नाम पर अपनी जान गंवा दी अब कल किसके पिता अपनी जान गंवाएंगे?
गमगीन दोस्त ने सुनाए शहीद इंस्पेक्टर के किस्से
शहीद इंस्पेक्टर के बैचमेट व दोस्त इंस्पेक्टर समरजीत सिंह ने बताया कि दोनों 1998 बैच के सब इंस्पेक्टर थे। वह 2013 से गौतमबुद्ध नगर जिले में थे और वर्ष 2014 में उनकी पोस्टिंग सेक्टर-20 थाने में एसएसआई के पद पर थी। इसके बाद वह कुछ समय के लिए सेक्टर-58 थाने में एसएसआई रहे।
इसके बाद पहली बार 2015 में ही थाना बादलपुर का चार्ज मिला। इसके कुछ समय बाद ही वह थाना जारचा प्रभारी बने थे। वर्ष 2016 में प्रमोशन मिला और वह मथुरा के वृंदावन थाना प्रभारी बने। उनका परिवार ग्रेनो वेस्ट के गौड़ सिटी में फर्स्ट एवेन्यू में रहता है।
परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं। बड़ा बेटा बीटेक की पढ़ाई कर रहा है। जबकि छोटा 12वीं का छात्र है। गौड़ सिटी में शिफ्ट होने से पहले सुबोध का परिवार नोएडा और गाजियाबाद में रहता था।
सोमवार को मौत की खबर सुनते ही परिवार में कोहराम मच गया। आनन फानन में पूरा परिवार बुलंदशहर के लिए रवाना हो गया। वहीं एटा से भी उनके रिश्तेदार बुलंदशहर पहुंच गए।
इकलाख केस में थे गवाह
बुलंदशहर के स्याना कोतवाली में दंगाइयों की गोली लगने से शहीद हुए प्रभारी निरीक्षक सुबोध कुमार की तैनाती बिसाहड़ा कांड के दौरान थी। सुबोध जारचा कोतवाली प्रभारी थे और उन्होंने बिसाहड़ा कांड की जांच की थी।
बिसाहड़ा में इकलाख हत्याकांड कांड के दौरान सुबोध कुमार जारचा कोतवाली प्रभारी रहे थे और लगभग आठ माह का कार्यकाल उनका जारजा में रहा है। इकलाख की मौत के बाद अगली सुबह 29 सितंबर 15 को ऊंचा अमीरपुर में एनटीपीसी के पास भी भड़की भीड़ और लाठीचार्ज के समय वह मौजूद रहे थे और उस दौरान पुलिस ने वहां मौजूद मस्जिद की सुरक्षा की थी।
इसी के चलते वह बिसाहड़ा कांड होने के बाद भी करीब छह माह तक जारचा थाने में रहे। ऊंचा अमीरपुर मोड़ पर लाठीचार्ज व फायरिंग के दौरान ऊंचा अमीरपुर निवासी राहुल यादव के गोली लगने का आरोप भी सुबोध कुमार पर रहा था जिसकी मजिस्ट्रेट जांच चल रही है।
मजिस्ट्रेटी जांच में थे गवाह
ग्रामीणों के अनुसार 28 सितंबर 2015 को बिसाहड़ा गांव मे इकलाख की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। इस दौरान मौके पर पर पाया गया मांस और फ्रिज में रखे मांस को अपनी देख रेख में पहले जिला पशु केंद्र और बाद में मथुरा स्थित जांच लैब में भेजा था। इस दौरान मजिस्ट्रेटी जांच में वह गवाह भी थे।
सुबोध कुमार के शहीद हो जाने से इकलाख केस में झटका लगा है। इकलाख के घर से मिले मांस को उन्होंने ही बरामद किया था। उनकी मौत का बिसाहड़ा के लोगों को बेहद दुख है।- संजय राणा, बिसाहड़ा निवासी