इस टॉप एक्ट्रेस को मिला था पहला दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड

मलयालम सिनेमा के सुपरस्टार मोहनलाल को इंडस्ट्री में बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा जाएगा। हाल ही में इसकी अनाउंसमेंट हुई और हर ओर से मोहनलाल को बधाइयां मिलने लगी। पिछले साल मिथुन चक्रवर्ती और उससे पहले रेखा को यह सम्मान मिला था।
पिछले 26 सालों से सितारों को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा जा रहा है। मगर क्या आपको पता है कि सबसे पहले यह अवॉर्ड पाने वाला कलाकार कौन था। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारतीय सिनेमा की फर्स्ट लेडी वो कलाकार हैं जिन्हें पहली बार दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
इस एक्ट्रेस को मिला था दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड
भारतीय सिनेमा की फर्स्ट लेडी कोई और नहीं बल्कि 1930 और 1940 के दशक की सबसे ज्यादा फीस वसूलने वाली अदाकारा देविका रानी थीं। अपने दौर में वह सबसे बड़ी एक्ट्रेस थीं जो बॉक्स ऑफिस पर राज करती थीं। सिनेमा में अपने योगदान के लिए ही उन्हें साल 1969 में पहली बार दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
बेबाकी के लिए जानी जाती थीं देविका रानी
एक रईस और एजुकेटेड परिवार में जन्मीं देविका रानी सिर्फ 9 साल की थी, जब उन्हें लंदन के बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया। वहीं से उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई की। विदेश में रहने के चलते उनका बोल्ड होना तो लाजमी था। यही वजह है कि उनकी पहली फिल्म बुरी तरह पिटी थी क्योंकि उन्होंने अपनी पहली ही फिल्म में लिपलॉक कर देशभर में सनसनी मचा दी थी।
20 दशक के आखिर में देविका रानी फिल्ममेकर हिमांशु राय से मिली थीं और फिर दोनों के बीच प्यार हुआ और एक साल के अंदर उन्होंने शादी कर ली। एक्टिंग से पहले वह आर्ट डायरेक्टर और कॉस्ट्यूम डिजाइनर थीं। फिर 1933 में हिमांशु राय ने एक फिल्म कर्म बनाई जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी देविका रानी के साथ स्क्रीन शेयर किया है।
लॉन्गेस्ट किसिंग सीन से मचाई थी सनसनी
यह फिल्म दो भाषाओं हिंदी और इंग्लिश में रिलीज हुई थी। इसे पहली इंग्लिश लैंग्वेज भारतीय फिल्म भी कहा जाता है। विदेशों में तो इस फिल्म को खूब पसंद किया गया लेकिन भारत में यह असफल रही। फिल्म में देविका और हिमांशु के 4 मिनट के किसिंग सीन ने पूरी इंडस्ट्री में हलचल मचा दी थी।
कर्म के बाद देविका रानी ने जवानी की हवा, जीवन नैया, जन्मभूमि, सावित्री, इज्जत, निर्मला, वचन, अनजान और हमारी बात जैसी फिल्मों में काम किया। पति हिमांशु के निधन के बाद उन्होंने बॉम्बे टॉकीज को भी संभाला। मगर साल 1945 में उन्होंने इंडस्ट्री से अलविदा ले लिया और रशियन पेंटर से दूसरी शादी कर उनके साथ बैंगलोर में बस गईं। साल 1994 में उनका निधन हो गया था।