उपराष्ट्रपति के तौर पर क्या होंगी राधाकृष्णन की शक्तियां: कौन सी जिम्मेदारियां संभालेंगे

उपराष्ट्रपति का पद भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में कितना अहम है? उपराष्ट्रपति के पास इस पद के साथ-साथ और क्या जिम्मेदारियां होती हैं? सीपी राधाकृष्णन पद संभालने के बाद किन सुविधाओं के हकदार होंगे? इसके अलावा उनका वेतन क्या होगा? आइये जानते हैं…

सीपी राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति चुनाव में विजेता बनकर उभरे हैं। उन्होंने मंगलवार (9 सितंबर) को हुए चुनाव में इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को हराया। जहां राधाकृष्णन को 452 प्रथम वरीयता के वोट मिले तो वहीं रेड्डी 300 वोट हासिल कर पाए। इसी के साथ राधाकृष्णन अब जल्द भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे। गौरतलब है कि जगदीप धनखड़ के जुलाई में इस्तीफा देने के बाद से ही उपराष्ट्रपति का पद खाली है।

ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर उपराष्ट्रपति का पद भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में कितना अहम है? उपराष्ट्रपति के पास इस पद के साथ-साथ और क्या जिम्मेदारियां होती हैं? सीपी राधाकृष्णन पद संभालने के बाद किन सुविधाओं के हकदार होंगे? इसके अलावा उनका वेतन क्या होगा? आइये जानते हैं…

लोकतांत्रिक प्रणाली में कितना अहम है उपराष्ट्रपति का पद?
भारत के उपराष्ट्रपति का पद देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। उनका कार्यकाल पांच वर्ष की अवधि का होता है। लेकिन वह इस अवधि के समाप्त हो जाने पर भी अपने उत्तराधिकारी के पद ग्रहण करने तक, पद पर बने रह सकते हैं।

संविधान में इसका जिक्र नहीं है कि भारत के उपराष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने से पहले जब उनका पद किसी कारण (मृत्यु-इस्तीफे) से खाली हो जाता है या जब उपराष्ट्रपति भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं, तब उपराष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन कौन करता है।

उपराष्ट्रपति के पास क्या जिम्मेदारियां/शक्तियां?
उपराष्ट्रपति के पास संसद के उच्च सदन- राज्यसभा की भी जिम्मेदारी होती है। वे राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। इस दौरान वे लाभ का कोई अन्य पद नहीं ग्रहण कर सकते।
राज्यसभा के सभापति के तौर पर उपराष्ट्रपति सदन में संविधान की व्याख्या और सदन से जुड़ने नियमों की व्याख्या करने वाले अंतिम प्राधिकारी हैं।
राज्यसभा को लेकर उनके किए गए फैसले बाध्यकारी मिसाल कायम करते हैं, जिनका जिक्र कर आगे भी निर्देश दिए जा सकते हैं।
सभापति ही फैसला करते हैं कि राज्यसभा का कोई सदस्य दल-बदल के तहत अयोग्य घोषित होंगे या नहीं। संसदीय लोकतंत्र में यह शक्तियां उपराष्ट्रपति को अलग पटल पर चिह्नित करती हैं।

राज्यसभा की कार्यवाही, सांसदों को लेकर भी कई अधिकार
इतना ही नहीं उपराष्ट्रपति के पास संसद के उच्च सदन के कामकाज को बेहतर करने की भी जिम्मेदारी होती है। ऐसे कई मौके आए हैं जब राज्यसभा के सभापति ने सदन में प्रश्नकाल में सांसदों की उत्पादकता को बढ़ाने में मदद की है। साथ ही सदन में विवाद की स्थिति को भी रोका और सदन की मर्यादा को कायम रखा, जिससे राष्ट्रहित के मुद्दों पर चर्चा सार्थक हो पाई।

इसके अलावा जब कभी किसी भी राज्यसभा सदस्य के खिलाफ विशेषाधिकार उल्लंघन का नोटिस दिया जाता है तो इसमें सभापति की सहमति अनिवार्य है। यह पूरी तरह सभापति के विवेकाधिकार में है कि वे किसी विशेषाधिकार उल्लंघन मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजें या नहीं और इससे जुड़ी सिफारिशों को स्वीकार करें या नकार दें

कई बार संसद में कोई विधेयक पेश होता है तो इसे अलग-अलग समितियों के पास भेजा जाता है। साथ ही कार्यपालिका की गतिविधियों और सरकार के खर्चों की निगरानी के लिए कई संसदीय समितियां भी बनती हैं। इनमें सदस्यों को नामित करने का अधिकार सभापति के पास होता है। वे समितियों के अध्यक्ष नियुक्त कर सकते हैं और उन्हें निर्देश जारी कर सकते हैं।

और भी कई जिम्मेदारियां
इसके अलावा उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सदस्यों को अलग-अलग निकायों में नामित कर सकते हैं। जैसे- हज समिति, संवैधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान (आईसीपीएस), आदि। इसके अलावा वे उस तीन सदस्यीय समिति का भी हिस्सा होते हैं, जो प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष को नामित करती है।

कब-कब उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर करते हैं काम?
अगर राष्ट्रपति का पद मृत्यु, इस्तीफे, बर्खास्तगी या अन्य कारणों से खाली होता है तो उपराष्ट्रपति इस दौरान कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर काम करते हैं। हालांकि, वे इस पद पर अगले राष्ट्रपति के निर्वाचित होने तक या राष्ट्रपति पद रिक्त होने के छह महीने तक ही रह सकते हैं। इस दौरान तक राष्ट्रपति पद भरना अनिवार्य है।
दूसरी तरफ अगर राष्ट्रपति बीमारी या विदेश यात्रा के कारण थोड़े समय के लिए अपना काम नहीं कर पाते, तो उपराष्ट्रपति उनके लौटने तक राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी संभालते हैं।
जब उपराष्ट्रपति पर राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी आती है तब वे राज्यसभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करते। इसके साथ ही वे राज्यसभा के सभापति को मिलने वाले किसी वेतन या भत्ते के हकदार नहीं होते। उपराष्ट्रपति जब राष्ट्रपति का दायित्व संभालते हैं तो उन्हें राष्ट्रपति की सारी शक्तियां, फायदे और वेतन मिलते हैं।

क्या हैं उपराष्ट्रपति के वेतन-भत्ते?
सीधे तौर पर समझें तो उपराष्ट्रपति को इस पद के लिए कोई वेतन नहीं मिलता। अधिकारियं के मुताबिक, उन्हें वेतन और भत्ते राज्यसभा के पदेन सभापति के तौर पर काम करने के लिए मिलते हैं। राज्यसभा के सभापति का वेतन चार लाख रुपये और अन्य भत्तों के साथ निर्धारित है।

वहीं अगर उपराष्ट्रपति कुछ समय के लिए कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर काम करते हैं तो वे सीधा राष्ट्रपति का वेतन और भत्ते लेते हैं। इस दौरान उन्हें राज्यसभा के सभापति के तौर पर वेतन-भत्ते नहीं मिलते।

किस-किस तरह के अन्य फायदे मिलते हैं?
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उपराष्ट्रपतिको कई तरह की सुविधाएं और भत्ते मिलते हैं। इनमें मुफ्त सरकारी आवास, चिकित्सा सेवाएं, ट्रेन-हवाई यात्रा का भत्ता, लैंडलाइन और मोबाइल सेवा, निजी सुरक्षा और आधिकारिक स्टाफ का खर्च भी शामिल है।

सेवानिवृत्ति के बाद उपराष्ट्रपति को हर महीने दो लाख रुपये पेंशन मिलने का भी प्रावधान है। इसके अलावा उन्हें एक टाइप-8 बंगला और स्टाफ सपोर्ट भी दिया जाता है। इसके अलावा उन्हें निजी सचिव, अतिरिक्त सचिव, निजी सहायक, एक डॉक्टर, नर्सिंग अफसर और चार अटेंडेंट की सुविधा भी मिलती है। इतना ही नहीं पूर्व-उपराष्ट्रपति के निधन की स्थिति में उनकी पत्नी को आजीवन टाइप-7 घर मिलता है।

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