वायु प्रदूषण बढ़ा रहा कैंसर का खतरा, जाने कैसे

हम जिस हवा में सांस लेते हैं, वही अब हमारी सेहत के लिए सबसे बड़ा दुश्मन बनती जा रही है। कभी जीवन का आधार रही यह हवा आज अदृश्य जहर में बदल चुकी है। यह सिर्फ खांसी, सांस की तकलीफ या एलर्जी तक सीमित नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे यह कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को भी जन्म दे रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बाहरी वायु प्रदूषण और उसमें मौजूद बारीक कणों को ग्रुप-1 कार्सिनोजेन यानी “कैंसर पैदा करने वाले प्रमुख तत्वों” की सूची में रखा है। इसका मतलब यह है कि हवा में मौजूद ये जहरीले तत्व उतने ही खतरनाक हैं जितना तंबाकू का धुआं या एस्बेस्टस।
राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस के मौके पर आइए डॉ. मीनू वालिया से समझते हैं कि हवा में घुला यह जहर किस तरह हमारे शरीर को अंदर से बीमार बना रहा है और हम इससे कैसे बच सकते हैं।
फेफड़ों की गहराई तक घुसने वाला जहर
हवा में मौजूद सबसे घातक तत्व हैं PM2.5 कण- ये इतने छोटे होते हैं कि शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली भी इन्हें रोक नहीं पाती। ये कण सांस के जरिए सीधे फेफड़ों तक पहुंचते हैं और वहां से खून में मिल जाते हैं।
इनमें अक्सर भारी धातुएं, हाइड्रोकार्बन और दूसरे रासायनिक जहर चिपके रहते हैं। जब ये शरीर में पहुंचते हैं, तो कोशिकाओं के डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे कैंसर की शुरुआत होती है। यही कारण है कि आज गैर-धूम्रपान करने वालों में भी फेफड़ों का कैंसर बढ़ रहा है।
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और सूजन का कनेक्शन
लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से शरीर लगातार एक सूक्ष्म सूजन की स्थिति में रहता है। इस दौरान शरीर में नामक तत्व बनते हैं, जो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। यह स्थिति ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कहलाती है- यानी जब शरीर की प्राकृतिक रक्षा क्षमता टूटने लगती है। इससे कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं और कैंसर के लिए अनुकूल माहौल बन जाता है। यह प्रभाव सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि मूत्राशय और स्तन कैंसर जैसे मामलों में भी देखा गया है।
खून के रास्ते पूरे शरीर में फैलता है जहर
वायु प्रदूषण का असर सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं है। बेहद छोटे प्रदूषक कण खून में घुसकर जिगर, गुर्दे और मस्तिष्क जैसे अन्य अंगों तक पहुंच जाते हैं। हाल के शोध बताते हैं कि लंबे समय तक ऐसी हवा में रहने वाले लोगों में मस्तिष्क, कोलन और मूत्र तंत्र से जुड़ी कैंसर की आशंका भी बढ़ जाती है। इसका मुख्य कारण है- पूरे शरीर में सूजन और डीएनए मरम्मत प्रणाली का कमजोर होना।
जीन्स पर प्रदूषण का असर
विज्ञान की नई शाखा एपिजेनेटिक्स बताती है कि प्रदूषण हमारे जीन्स के ढांचे को नहीं, बल्कि उनके व्यवहार को बदल देता है। हवा में मौजूद रासायनिक तत्व DNA methylation की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, जिससे कुछ महत्वपूर्ण जीन्स “खराब” हो जाते हैं जो कैंसर को रोकते हैं, जबकि कुछ जीन्स “एक्टिव” हो जाते हैं जो ट्यूमर को बढ़ावा देते हैं। यह बदलाव अदृश्य होते हैं, लेकिन असर गहरा होता है- यानी हवा हमारे जेनेटिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती है।
शहरों की ‘साइलेंट किलर’ हवा
शहरों में प्रदूषण का असर और भी ज्यादा होता है, क्योंकि यहां हवा के साथ-साथ शोर, तनाव, खराब खानपान और नींद की कमी जैसे अन्य कारक भी शरीर को कमजोर करते हैं। जो लोग मुख्य सड़कों, फैक्टरियों या औद्योगिक क्षेत्रों के पास रहते हैं, वे लगातार कई पर्यावरणीय जोखिमों का सामना करते हैं। यह सब मिलकर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है और कैंसर जैसी बीमारियों का रास्ता आसान बना देता है।
छोटी कोशिशों से होगा बड़ा असर
बेशक प्रदूषण को पूरी तरह रोकना सरकारों और नीतियों की जिम्मेदारी है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर भी हम कई कदम उठा सकते हैं जो हमारे जोखिम को कम कर सकते हैं:



