समुद्र मंथन से जुड़ी है मोहिनी एकादशी की कहानी, जानिए क्यों श्रीहरि बने थे सुंदरी

हर माह में दो एकादशी होती हैं। मई महीने में मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई को रखा जाएगा। इस व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु लोक में सुखमय जिंदगी पूरी करने के बाद वह मोक्ष पा लेता है।

कहते हैं कि समुद्र मंथन से जुड़ी मोहिनी एकादशी के इस व्रत की कथा को पढ़ने या सिर्फ सुनने मात्र से ही हजार गायों के दान के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। जानिए आखिर क्यों भगवान विष्णु ने रखा था मोहिनी का रूप। मगर, उससे पहले जानते हैं इस व्रत की तारीख और पारण का समय।

मोहिनी एकादशी का पारण 9 मई को होगा

पंचांग के अनुसार, हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। यह तिथि 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर शुरू होकर 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर खत्म होगी। उदया तिथि में इस व्रत को मनाने के कारण 8 मई 2025 को गुरुवार के दिन इसका व्रत रखा जाएगा।

मोहिनी एकादशी का महत्व
मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की पूजा की जाती है। इसकी कहानी समुद्र मंथन की घटना से जुड़ी हुई है। दरअसल, समुद्र मंथन के बाद उससे अमृत कलश निकला था। इसे पाने के लिए असुरों ने भी अपना दावा किया था।
यदि असुर भी अमृत पान कर लेते, तो वो भी अमर हो जाते। ऐसी स्थिति में असुरों को अमृत पान से रोकने के लिए देवताओं ने सृष्टि के पालक श्रीहरि से विनती की। तब उन्होंने असुरों को अमृत पान से रोकने के लिए मोहिनी का रूप धारण किया था।

सुंदरी के रूप में वह इतने आकर्षक लगे कि उन्हें देखकर असुर मोहित हो गए और श्रीहरि ने अमृत को देवताओं को दिया, जिससे देवताओं को अमरत्व मिला। उसी घटना को याद करते हुए मोहिनी एकादशी का व्रत किया जाता है।

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