दिल्ली में ग्रेप 4 लागू… फिर भी प्रदूषण नियमों पर उड़ रही धूल

राजधानी में ग्रेप का चौथा चरण लागू हो चुका है, जिसका उद्देश्य वायु गुणवत्ता को नियंत्रित करना और आम लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा करना है। इसके बावजूद सरकारी नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, जिससे राजधानी में वायु गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है। मंगलवार को मयूर विहार इलाके में सड़क किनारे कूड़ा जलते हुए देखा गया। कूड़ा जलाना ग्रेप के तहत पूरी तरह से प्रतिबंधित है, क्योंकि इससे जहरीली गैसें और कण वायु में फैलते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण से पीएम2.5 और पीएम10 का स्तर तेजी से बढ़ता है, जो सांस संबंधी बीमारियों और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं।
नई दिल्ली के कुछ इलाकों में निर्माण कार्य चल रहा था, लेकिन वहां ग्रीन नेट या धूल रोकने वाले उपकरण नहीं लगाए गए थे। यही नहीं, अप्सरा बॉर्डर के पास सड़क पर बसों के लगातार चलने से भी धूल का गुबार उठता दिखा। यह दृश्य मानों ऐसा लग रहा हो, जैसे कोई धूल भरी आंधी चल रही हो। इससे आसपास के इलाके में रहने वाले लोगों को मजबूरन परेशान झेलनी पड़ी।
उड़ती धूल ने वायु गुणवत्ता पर नकारात्मक असर डाला और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सीधे तौर पर आम लोगों की सेहत को प्रभावित करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, ग्रेप लागू होने के बावजूद नियमों की अनदेखी से राजधानी में प्रदूषण नियंत्रण की प्रभावशीलता कमजोर पड़ रही है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने अधिकारियों से निर्माण स्थलों पर ग्रीन नेट लगाने, कूड़ा जलाने पर सख्त प्रतिबंध लगाने और सड़क धूल पर नियमित निगरानी करने का अनुरोध किया है।
बैन के बावजूद कूड़े के ढेरों में आग लगने के बारे में 4,753 कॉल मिली
अग्निशमन विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, बैन के बावजूद इस साल 30 नवंबर तक दिल्ली में कूड़े के ढेरों में आग लगने के बारे में 4,753 कॉल आईं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 4,676 कॉल आई थीं। यानी इस वर्ष इस तरह की घटनाएं अधिक सामने आई हैं। इस वर्ष केवल अप्रैल माह में ही 1,030 कूड़े में आग लगने की घटनाएं सामने आईं, जबकि नवंबर माह में जब ग्रेप-4 की पाबंदियां लागू थीं, उसमें 973 ऐसी घटनाएं सामने आईं। यही नतीजा है कि नगर निगम और लोगों की लापरवाही से सांसों पर संकट बना हुआ है। एक अग्निशमन विभाग अधिकारी के मुताबिक, दिल्ली में कूड़े में आग लगने की घटनाएं खासकर यमुनापार, गाजीपुर लैंडफिल और अन्य इलाकों से अधिक सामने आ रही हैं, जिससे भीषण प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं।
कूड़े में आग लगने से निकलने वाला धुआं जानलेवा
विशेषज्ञों और डॉक्टरों के अनुसार, कचरा जलाने पर पीएम 2.5 के सूक्ष्म कण सांस के जरिए फेफड़ों में चले जाते हैं। कचरा जलाने के दौरान निकलने वाले जहरीले रसायनों में नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और पॉलीसाइक्लिक कार्बनिक पदार्थ (पीओएम) शामिल हैं। उपचारित लकड़ी को जलाने से भी जहरीले रसायन निकलते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कूड़े में आग लगने से निकलने वाले सूक्ष्म कण पीएम 2.5 और पीएम 10 वायु की गुणवत्ता को गंभीर रूप से खराब कर देते हैं।



