बिना केवाईसी के लोन दे रहा है यह बैंक ,तो यह सुनकर आपको पहली बार तो यकीन नहीं लेकिन ……
अगर कोई आपसे कहे कि बैंक बिना केवाईसी (KYC) किए लोन दे रहा है तो यह बात सुनकर आपको पहली बार तो यकीन नहीं होगा. लेकिन एक बैंक ऐसा ही है जो बिना केवाईसी के ही ग्राहकों को लोन देता है. वह भी एक- दो को नहीं बल्कि अब तक हजारों ग्राहकों को इस तरह से लोन दिया जा चुका है. इससे भी आश्चर्य वाली बात यह है कि बिना केवाईसी के बैंक की तरफ से लोन दिए जाने के बावजूद भी बैंक का एनपीए शून्य है. यह बैंक है अहमदाबाद का कोऑपरेटिव बैंक, यहां पर बिना केवाईसी के लोन मिलता है.
1970 में हुई बैंक की स्थापना
अहमदाबाद का कालूपुर कमर्शियल कोऑपरेटिव बैंक 1970 में कालूपुर नाम के एरिया में शुरू हुआ था, इसलिए बैंक का नाम भी उस एरिया के नाम से रखा गया है. आपको जानकर हैरानी होगी कि बैंक का एनपीए जीरो है फिर भी बैंक कुछ लोन इस तरह से देते हैं कि जिनका कोई केवाईसी होता ही नहीं है. बैंक की तरफ से यह लोन दिया जाता है बंजारों को, जो आज यहां तो कल वहां. मतलब घूमने फिरने वाली जाति जो ट्राईबल लोग होते हैं उनको बहुत ही बड़े पैमाने पर लोन दिया जाता है.
बिना केवाईसी 1800 लोगों को मिला लोन
कुल ऐसे 1800 लोगों को लोन दिया जिनमें से ज्यादातर लोगों का केवाईसी था ही नहीं फिर कुछ एनजीओ के मध्यस्थता के कारण बैंक उनको लोन देने के लिए आगे आए. हालांकि बैंक का उद्देश्य यही है कि जो पिछड़े लोगो को भी बैंकिंग सिस्टम का लाभ मिले. आपको जानकर आश्चर्य होगा की अब तक 1800 लोगो को कुल 7 करोड़ से अधिक का लोन दिया है और लोग पैसे भी लौटा रहे है. पिछले 10 साल में KYC के बगैर के लोन में सिर्फ डेढ़ लाख रुपये ही वापस नहीं आए.
लोन की अधिकतम राशि 50 हजार रुपये
लोन की अधिकतम राशि 50 हजार रुपये होती है. हालांकि यहां पर ऐसे लोगों को लोन मिलता है जिनका न तो घर होता है और न ठिकाना. जबिक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का पहला नियम है कि बिना घर एड्रेस की जांच किए लोन नहीं दिया जा सकता, लेकिन यह बैंक अपने आप में विशेष है. इस बारे में कालूपुर कॉमर्शियल कोऑपरेटिव बैंक के सीनियर एग्जीक्यूटिव एचके शाह कहते हैं, ‘शुरुआत हमने होम लोन से की और बाद में जो स्ट्रीट वेंडर होते हैं उनको लोन देने का सिलसिला जारी रखा इनका केवाईसी नहीं के बराबर होता है. हमने अहमदाबाद का ओढव नाम का इलाका खोज निकाला जहां पर यह बंजारे रहते हैं जो कच्छ के रहने वाले हैं.
ये लोग झाड़ू बनाने का काम करते हैं. बैंक ने ज्यादातर परिवार को 40,000 रुपये का लोन दिया है, जिनमें से वह झाड़ू का मटेरियल खरीदकर गली मोहल्ले में बेचने जाते हैं. ये लोग हर महीने की नियत तारीख पर बैंक में जाकर वह पैसे जमा कर देते हैं. उनको पता नहीं है कि कितने हफ्ते बैंक में जमा हुए और कितने बाकी है लेकिन ईमानदारी से पैसा दो भर रहे हैं और बैंक की छोटी सी आर्थिक सहायता से आज वह अच्छा जीवन जी रहे हैं. हालांकि अभी भी उनके घर के अंदर लाइट पानी जैसी बुनियादी सुविधा नहीं है. वह टेंपरेरी घर बनाकर रह रहे हैं और पूरे गुजरात में घूमते फिरते हैं.