आखिर क्यों होती हैं सांपो की बीच से कटी जीभ, क्या इसके पीछे का कारण
हम सभी जानते हैं कि सांपों में देखने और सुनने की शक्ति काफी कम होती है इसलिए उन्हें कुदरत ने जीभ दी है ताकि उसका इस्तेमाल करके देख और सुन सके। इसके साथ सूंघने में और आसपास का तापमान और वातावरण को जानने के लिए भी वे जीभ का उपयोग करते हैं। लेकिन कभी इस बात पर गौर किया है की आखिर सांपो की जीभ बीच से क्यों कटी होती है? तो चलिए मैं आज आपको अपने इस आर्टिकल की मद्दद से बताती हु की क्यों सांप की जीभ बीच से कटी होती है और इसके साथ साथ मैं आपको इसके पीछे का पौराणिक कारण भी बताउंगी। सांप अपनी जीभ के माध्यम से ही शिकार पकड़ता है और यह कटी जीभ सांप को शिकार के बारे में उसकी गर्मी दूरी और दिशा सब बता देती है। कटे होने के कारण जीभ को अधिक फैलाव मिलता है जो शिकार को पकड़ने में मदद करता है। परंतु हिंदू पुराणों की मानें तो सांप की जीभ के फटे होने का कोई और ही कारण है।
तो आइए जानते हैं कि आखिर पौराणिक कथाओं के अनुसार सांपों की जीभ दो हिस्सों यानी कि बीच से कटी क्यों होती है ? पुराणों के अनुसार गरुड़ और सर्प दोनों सौतेले भाई हैं और सांपो की माँ कत्रु ने छल द्वारा गरुड़ की मां विनता को अपना दासी बना लिया था और उसके बाद सर्पो ने गरुण से कहा था कि वे उनके लिए स्वर्ग से अमृत लाए तो सर्प उनकी मां को दासता से मुक्त कर देंगे। तब गरुण अपनी मां को मुक्त करने के लिए स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और सभी देवताओं को परास्त कर अमृत हासिल कर लिया गरुण का पराकर्म देख भगवान् विष्णु बहुत प्रसन्न हुए थे और उसके बाद उन्होंने गरुण को अपना वाहन बना लिया था। उधर गरुण से युद्ध करते हुए इंद्रदेव मूर्छित हो गए थे और उनकी मूर्छा जब टूटी तो उन्होंने गरुण को अमृत कलश ले जाते थे उनका पीछा किया और गरुड़ पर अपनी बज्र से प्रहार कर दिया। किंतु भगवान विष्णु से अजर अमर होने का वरदान प्राप्त कर चुके गरुड़ को कुछ भी नहीं हुआ।
ये देख इंद्र देव बहुत चिंतित हो गए और गरुण से बोले मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूं गरुड़ देव ने देवराज इंद्र की मित्रता स्वीकार कर ली उसके बाद इंद्रदेव बोले हे मित्र यह अमृत कलश तुमको देने जा रहे हो वे इसे पाकर अजर अमर हो जाएंगे और विनाश करने का काम करेंगे इसलिए मित्र ये अमृत कलश मुझे दे दो। तब गरुण ने इंद्रदेव से कहा कि मित्र मैं ये अमृत कलश तुम्हें नहीं दे सकता क्योंकि इस अमृत कलश को सर्पों को देकर मुझे अपनी माता को उनकी दासता से मुक्त कराना है परंतु मैं इस अमृत कलश को जहा रखूंगा वहां से आप इसे उठाकर वापस ला सकते हैं। गरुण की यह बातें सुनकर इंद्रदेव प्रसन्न हो गए और बोले मित्र तुम मुझसे कोई वरदान मांगो तब गरुड़ देव ने कहा कि जिन सर्पो ने मेरी माता को छल से अपना दास बनाया था वे सभी सर्प मेरा प्रिय भोजन बने।
देवराज इंद्र से वरदान पाने के बाद गरुण अमृत का कलश लेकर सर्पो के पास गए औरसर्पो से कहा कि मैं तुम्हारे लिए अमृत लेकर आया हूं औरअब तुम मेरी माता को अपनी दस्ता से मुक्त कर दो गरुण के हाथ अमृत कलश देखकर सर्प खुश हो गए और कहा कि आज से तुम्हारी माता हमारी दासता से मुक्त है। उसके बाद गरुण ने अमृत कलश को कुश के बने आसन पर रख दिया और सर्पो से कहा कि तुम लोग पवित्र हो अमृत पियो और उसके बाद वह अपनी माता को लेकर वहां से चले गए। उसके बाद सभी सर अपने आपस में विचार किया कि गरुण ने कहा कि पवित्र हो अमृत पियो तो पहले हमे स्नान कर पवित्र हो जाना चाहिए और सभी सर्प स्नान करने चले गए। इसी बीच घात लगा कर बैठे देवराज इंद्र अमृत कलश को लेकर स्वर्ग लोक चले जाते हैं उधर जब सर्प स्नान कर वापस अमृत पीने के लिए आते हैं तो देखते हैं कि उस कुश के आसन पर अमृत कलश नहीं है फिर वह सभी मन ही मन सोच है कि जिस तरह हम सभी ने गरुण की माता को छल से दासी बनाया था ये उसी का फल है। अमृत कलश गायब हो जाने के बाद सभी सर्पो को अमृत पीकर अजर अमर होने की अभिलाषा समाप्त हो गई। सभी उस कुश के आसन को बड़ी दीनता से देख रहे थे जिस पर गरुण ने अमृत कलश रखा था. सभी सर्पो के दिमाग में एक विचार आया कि हो सकता है इस कुश के आसन पर अमृत गिरा हो और यह सोचकर सभी सर्प के आसान को चाटने लगे जिससे सभी सर्पो की जीभ बीच से फट गई। ऐसा माना जाता है कि तभी से सभी सर्पो की जीभ दो हिस्सों में बांट गई।