दिल्ली: गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन में दिखीं जीवन की लहरें, डॉल्फिन की संख्या पहुंची 6324

गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी की धाराओं में एक बार फिर जीवन की लहरें दिखाई दी हैं। इन दोनों प्रमुख नदियों में कुल 6,324 गंगा डॉल्फिन दर्ज की गई हैं। इसका खुलासा वन्यजीव संस्थान ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपी अपनी रिपोर्ट में किया है। डॉल्फिन का यह आंकड़ा केवल एक संख्या नहीं, बल्कि वर्षों से जारी जल संरक्षण और जैव विविधता की रक्षा के प्रयासों का प्रमाण है।

गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव माना गया है। ये डॉल्फिन केवल स्वच्छ, बहती और प्रदूषण-मुक्त जलधाराओं में ही जीवित रह सकती हैं, इसलिए इनकी मौजूदगी को नदी की सेहत का सबसे विश्वसनीय संकेतक माना जाता है। एक समय ऐसा भी था जब इनकी संख्या तेजी से गिर रही थी, लेकिन हाल के वर्षों में सरकारी योजनाओं, पर्यावरण संगठनों और स्थानीय समुदायों के समन्वित प्रयासों ने डॉल्फिनों के लिए आशा की किरण जगाई।

यह सर्वेक्षण पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से 2020 से 2023 के बीच किया गया, जिसमें 7,680 किलोमीटर नदी तटों का अध्ययन शामिल था। यह अध्ययन एनजीटी के निर्देश पर किया गया, जिसने 20 जनवरी, 2025 को डब्ल्यूआईआई को गंगा बेसिन में डॉल्फिन की संख्या और उनके संरक्षण की स्थिति पर जानकारी देने का आदेश दिया था। वन्यजीव संस्थान की तरफ से किए गए इस सर्वेक्षण में गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों को शामिल किया गया था।

सर्वेक्षण का दायरा और पद्धति
इस सर्वेक्षण का उद्देश्य गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में जैव विविधता का मूल्यांकन करना और नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत की जांच करना था। खास तौर पर, गंगा डॉल्फिन, जो भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव है, उनकी आबादी और उनके आवास की स्थिति को समझना इस अध्ययन का प्रमुख लक्ष्य था। सर्वेक्षण में गंगा की मुख्य धारा के साथ-साथ इसकी 22 सहायक नदियों को शामिल किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, गंगा नदी घाटी में 3,936 डॉल्फिन पाई गईं, जबकि ब्रह्मपुत्र और इसकी सहायक नदियों में शेष आबादी दर्ज की गई। यह सर्वेक्षण राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की तरफ से वित्तपोषित था।

विशेषज्ञों की टीम नाव से सर्वेक्षण में जुटी रही
गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन में डॉल्फिन की गिनती के लिए प्रशिक्षित विशेषज्ञों की टीम नाव से सर्वेक्षण में जुटी रही। दूरबीन से लैस टीम ने न केवल डॉल्फिनों की संख्या दर्ज की, बल्कि उनके रहने के स्थानों से जुड़ी पर्यावरणीय जानकारियां भी इकट्ठा कीं। सर्वे में नदी की गहराई, चौड़ाई, प्रवाह, मछली पकड़ने और रेत खनन जैसी मानवीय गतिविधियां भी दर्ज की गईं। आमतौर पर हर 90-120 सेकंड में दिखने वाली डॉल्फिन को अलग-अलग माना गया, जिससे दोबारा गिनती की संभावना कम हुई।

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