हरियाणा: धुंधली होने लगी पूर्व गृहमंत्री मनीराम गोदारा की निशानियां

हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री मनीराम गोदारा की यादें और निशानियां धुंधली होने लगी हैं। उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उनकी अगली पीढ़ी जूझ रही है। उनके दोनों पुत्रों का निधन हो चुका है। उनके परिवार से अब पौत्र सुधीर गोदारा ही राजनीति में ज्यादा सक्रिय हैं।

प्रदेश के विकास में बड़े नेताओं का भरपूर योगदान रहा है। मगर समय बीतने के साथ उनकी यादों से लेकर निशानियां तक धुंधली होने लगती है। ऐसे ही बड़े नेताओं में शुमार रहे फतेहाबाद जिले के दिग्गज राजनीतिज्ञ स्व.मनीराम गोदारा। संयुक्त पंजाब से लेकर हरियाणा बनने के बाद भी विधायक, सांसद, बिजली व सिंचाई मंत्री और गृह मंत्री तक बने मनीराम गोदारा की राजनीतिक विरासत संसद या विधानसभा की सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए जूझ रही है।

उनके दोनों पुत्रों का निधन हो चुका है। उनके परिवार से अब पौत्र सुधीर गोदारा ही राजनीति में ज्यादा सक्रिय हैं। वह कांग्रेस में कुमारी सैलजा के गुट में रहकर राजनीतिक पारी खेलने की इच्छा रखे हुए हैं। मगर साल 2016 में जिला परिषद के चुनाव में भी उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी।

यूं तो मनीराम गोदारा के गांव में सुख-सुविधाएं पूरी हैं, लेकिन उनके नाम की निशानी के तौर पर परिवार की कोठी ही है। गांव की किसी सरकारी इमारत या सुविधा पर उनका नाम अंकित नहीं है। उनके खुद के गांव निमड़ी की तो पंचायत ही नहीं है। निमड़ी साथ लगते गांव हड़ौली की पंचायत का हिस्सा है। हालांकि, फतेहाबाद जिला मुख्यालय के साथ लगते गांव भोडियाखेड़ा में बनाए गए राजकीय कन्या महाविद्यालय का नाम जरूर स्व.मनीराम गोदारा के नाम पर है।

गांव निमड़ी निवासी भादर सिंह बताते हैं कि मनीराम गोदारा खरी बात कहने के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने सत्ता में रहते हुए निमड़ी में बिजली घर, दादूपुर में जलघर, रतिया को तहसील का दर्जा दिलवाया। कई गांवों के रास्ते बनवाए। स्पेशल नहर निकलवा कर 17 गांवों को पानी उपलब्ध करवाया। घग्गर नदी पर पुल मंजूर नहीं होने से नाराज होकर मनीराम गोदारा ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था।

यह रहा राजनीतिक जीवन
मनीराम गोदारा ने उस समय भारत के ही हिस्से रहे लाहौर के डीएवी कॉलेज और शिमला के आरपीसीएसडी कॉलेज में छात्र नेता के रूप में अपनी राजनीतिक शुरुआत की थी। इसके बाद 1947 में देश आजाद होने के बाद सक्रिय राजनीति में आए और 1948 में कांग्रेस के सदस्य बन गए। 1950 में थाना कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। 1962 से 64 तक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे। उन्होंने 1956 में फतेहाबाद विधानसभा का उपचुनाव लड़ा। इसके बाद इसी सीट से जीतकर 1957-62 तक संयुक्त पंजाब में एमएलए रहे।

फिर 1967-68 तक हरियाणा विधानसभा के लिए बड़ोपल सीट से चुने गए। वह 1967 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह की सरकार में हरियााणा के सिंचाई एवं बिजली मंत्री बनाए गए। इसके बाद 1971 में हुए लोकसभा के चुनाव में उन्होंने हिसार सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचे। वह पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी के संस्थापक सदस्य भी रहे। 1996 से 1999 तक बंसीलाल सरकार में गृह मंत्री रहे। इस दौरान उनके पास जेल, पीडब्ल्यूडी बीऐंडआर, परिवहन, पर्यावरण जैसे विभाग भी रहे।

आचार्य विनोबा भावे के कहने पर दान कर दी थी 150 एकड़ से ज्यादा जमीन
मनीराम गोदारा का जन्म गांव बड़ोपल में हुआ था। मगर बाद में उन्होंने गांव हड़ौली के पास 1200 एकड़ जमीन खरीदकर यहां गांव निमड़ी बसाया था। मनीराम गोदारा ने आचार्य विनोबा भावे के भू-दान आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया। उन्होंने विनोबा भावे के कहने पर गांव बड़ोपल, कुम्हारिया, साबरवास और निमड़ी में अपनी 150 एकड़ से ज्यादा जमीन दान कर दी थी। निमड़ी में 10 परिवारों को पांच-पांच एकड़ जमीन दान की थी। इसके अलावा उस समय चल रही मुजारा प्रथा को तुड़वाने में उनकी अहम भूमिका रही। मुजारों को भी जमीन का मालिकाना हक मिला।

चौधरी देवीलाल और भजनलाल के साथ रही राजनीतिक प्रतिद्वंदता
मनीराम गोदारा बेबाक छवि के नेता था। उनकी हमेशा पूर्व उपप्रधानमंत्री स्व.चौधरी देवीलाल और पूर्व मुख्यमंत्री स्व.भजनलाल के साथ हमेशा राजनीतिक प्रतिद्वंदता रही। स्व.भजनलाल और गोदारा के एक ही समाज से होने के चलते कई बार जुबानी हमले करते रहते थे। हालांकि, कुछ समय के लिए चौधरी देवीलाल और उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला के साथ भी आए। मगर वह राजनीतिक दोस्ती लंबी नहीं चल पाई। साल 1999 में बंसीलाल सरकार जाने के बाद मनीराम गोदारा सक्रिय राजनीति से दूर हो गए। साल 2009 में उनका निधन हो गया।

पुल के लिए उद्घाटन पत्थर लगा, तब चुनाव लड़ने की हां भरी
स्व.मनीराम गोदारा के पौत्र सुधीर गोदारा पुराना किस्सा सुनाते हुए बताते हैं कि संयुक्त पंजाब के समय पंजाब का बुढलाडा क्षेत्र तक उनके पिता के विधानसभा क्षेत्र में आता था। चुनाव के दौरान उन्होंने लोगों की मांग पर वादा कर दिया कि घग्गर नदी पर पुल बनवा देंगे ताकि आवागमन सरल हो जाए। यह भी कह दिया कि अगर पुल नहीं बना तो वोट मांगने नहीं आऊंगा। मगर अगले चुनाव आने तक पुल नहीं बना। जब चुनाव लड़ने की बात आई तो उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों को मना कर दिया। कैरों ने कारण पूछा तो कहा कि मैं जुबान का धनी हूं और पुल का वादा पूरा नहीं हो सका। इस पर कैरों ने कहा कि पुल इतनी जल्दी नहीं बनता है। पलट कर गोदारा ने कहा कि पुल जल्दी नहीं बन सकता तो उद़्घाटन पत्थर तो लग सकता है। इसके बाद उद्घाटन पत्थर लगा और फिर मनीराम गोदारा ने चुनाव लड़ा।

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