प्रदूषण से निपटने के लिए 7,500 इलेक्ट्रिक बसें चलाने का लक्ष्य

दिल्ली एन.सी.आर का प्रदूषण खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। प्रदूषण को लेकर विपक्ष सरकार को घेर रहा है कि 11 महीने की भाजपा सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए कौन से कदम उठाए। इसी बीच केंद्र सरकार ने राजधानी में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिए मेट्रो के पांचवें फेज की तीन नई लाइनों को हरी झंडी देते हुए 12 हजार करोड़ रुपये मंजूर कर दिए, ताकि दिल्ली में प्रदूषण से निपटने में सहुलियत हो। जबकि दिल्ली सरकार ने मौजूदा 3500 से दोगुनी इलेक्ट्रिक बसें चलाने का लक्ष्य रखा है। प्रदूषण के खिलाफ पंजाब केसरी की मुहिम में आज हमने तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा से खास बातचीत की।
अभी दिल्ली सरकार प्रदूषण से निपटने के लिए कौन से काम कर रही है, जो फौरी राहत के तौर पर साबित हो सकें?
हमें यह समस्या विरासत में मिली है। हम तो 27 साल बाद सरकार में आए हैं और यह बीमारी भी 27 साल पुरानी है। पिछले 10 साल आप की सरकार रही और हर साल यही कहा गया कि प्रदूषण खत्म करेंगे, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं किया गया। अगर उन्होंने 10 साल में 5 बड़े काम भी कर दिए होते, तो आज हमें बाकी 5 करने पड़ते। लेकिन जब कुछ भी नहीं किया गया, तो आज हमें वो सारे काम एक साथ करने पड़ रहे हैं।
वे कौन-से काम थे, जो पहले होने चाहिए थे और अब आप कर रहे हैं?
दिल्ली में जो कूड़े के पहाड़ आप देखते हैं, वे प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण हैं। पहले इन्हें हटाने पर कोई गंभीर काम नहीं हुआ। हमने आते ही इस पर काम शुरू किया है और लगभग 40 प्रतिशत कूड़े के पहाड़ खत्म किए जा चुके हैं। डस्ट मिटिगेशन पर पहले की सरकार ने काम करना तो दूर, उसकी चर्चा तक नहीं की। हमने अब सड़कों की दोबारा लेयरिंग शुरू की है और एंड-टू-एंड काम किया जा रहा है। जहां भी ब्राउन एरिया यानी मिट्टी वाला हिस्सा है, उसे खत्म किया जा रहा है—कहीं फुटपाथ बनाए जा रहे हैं, कहीं कवर किया जा रहा है, कहीं पौधारोपण किया जा रहा है। क्योंकि मिट्टी ही धूल बनकर प्रदूषण का बड़ा स्रोत बनती है।
दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहनों से होने वाला प्रदूषण है, उससे निपटने के लिए अब तक आपने क्या कदम उठाए?
वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी बड़ी समस्या है, पुरानी गाड़ियां, ट्रक, बसें अगर पहले इस पर काम हो गया होता, तो बीमारी काफी हद तक खत्म हो जाती। इसलिए हमने इलेक्ट्रिक बसों को तेजी से शामिल करना शुरू किया है। आज हमारा लक्ष्य लगभग 4,000 बसों तक पहुंचने का है और 2026 तक 7,500 बसों का बेड़ा तैयार करने का लक्ष्य है।
11 महीने से दिल्ली में भाजपा की सरकार है, लेकिन कब तक आप पिछली सरकारों को दोष देते रहेंगे?
दोष नहीं दे रहे, सच्चाई बता रहे हैं। अगर पहले कुछ नहीं किया गया, तो यह बताना भी जरूरी है कि बीमारी आई कहां से?। हर महीने हम पिछले साल की तुलना में 40–50 ए.क्यू.आई पॉइंट कम करने में सफल रहे हैं। कम से कम हमने हालात को बिगड़ने नहीं दिया है।
आप पर्यावरण मंत्री हैं। क्या आपको नहीं लगता कि प्रदूषण का स्थाई समाधान होना चाहिए?
बिल्कुल होना चाहिए। लेकिन जब समस्या 25–27 साल पुरानी हो, तो वह 5–7 महीनों में खत्म नहीं हो सकती। प्रदूषण खत्म करने के लिए पांच बड़े काम जरूरी हैं। पहला सभी गाड़ियों को नॉन-पॉल्यूटिंग बनाना, BS-6 और इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर जाना। इसके लिए चार्जिंग स्टेशन और पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए, जिस पर हम लगातार काम कर रहे हैं। आज हम दिल्ली के अंदर केजरीवाल सरकार का 35,000 मीट्रिक टन पुराना कूड़ा उठा रहे हैं, जो 10 साल का हमें छोड़कर गए हैं, और 8,000 मीट्रिक टन कूड़ा हम रोज का उठा रहे हैं, जो प्रतिदिन दिल्ली में पैदा हो रहा है। अगर दोनों को मिला दें, तों 43,000 मीट्रिक टन कूड़ा प्रतिदिन प्रोसेस करके दिल्ली से बाहर निकालना एक बड़ा टास्क है। पूरी दुनिया में कोई ऐसा शहर हो जो 42,000–43,000 मीट्रिक टन कूड़ा रोज़ शहर से बाहर निकालता हो।
राजधानी में उद्योगों से निकलने वाला कचरा भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है, उसके लिए आपने क्या कदम उठाए?
अब केजरीवाल ने तो कुछ किया ही नहीं, तो फिर कुछ कहना तो पड़ेगा, कैसे न कहें। दो बार जब शीला दीक्षित की सरकार थी, तब ये इंडस्ट्री एरिया अवैध थे। इन्हें रेगुलराइज करने की बात हुई थी। लेकिन तब से लेकर अब तक कुछ नहीं किया गया।
न ही नक्शा दिलवाया गया, न इन्हें प्रदूषण के दायरे में लाया गया। अब हमने आकर अपनी सरकार में ऐसी 9,000 इंडस्ट्री को प्रदूषण के दायरे में लाया है। उनके मानक ठीक किए हैं और उन्हें कहा है कि इंडस्ट्री को अपना प्रदूषण ठीक करना होगा। हमारे साथ–साथ गाजियाबाद, मेरठ, पूरे हरियाणा—सोनीपत, पानीपत, रोहतक, गुरुग्राम, फरीदाबाद, पलवल सब लोगों को मिलकर ही ऐसे कदम उठाने होंगे ।
विपक्ष आरोप लगाता है कि ए. क्यू. आई में हेरफेर किया जा रहा है?
हां, कुछ लोग कहते हैं कि ए.क्यू.आई मीटर पर पानी डालकर काम खत्म किया जा रहा है, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। वाटर स्प्रिंक्लिंग का काम जारी है और सही तरीके से स्प्रिंकलर लगाए गए हैं। जब तक डस्ट कंट्रोल पूरी तरह से नहीं हो जाता, यह तरीका आवश्यक है। ये सारे स्प्रिंकलर खुद हमारी टीम ने लगाए हैं, कोई भी इन्हें छेड़छाड़ नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट भी इसकी मॉनिटरिंग करती है।
नितिन गडकरी ने कहा है कि प्रदूषण में 40 फीसदी ट्रांसपोर्ट सैक्टर का योगदान है।
हर जिले में व्हीकल से संबंधित समस्याओं पर काम हो रहा है। अगर प्रदूषण चेक नहीं कराए जाएंगे, तो बारामेटर सही नहीं रहेंगे। इसलिए व्हीकल से संबंधित प्रदूषण पर लगातार काम किया जा रहा है।
संसद में राहुल गांधी ने प्रदूषण का मुद्दा उठाया, लेकिन चर्चा नहीं हो सकी, आखिर क्यों?
राहुल गांधी ने संसद में मुद्दा उठाया। लेकिन जब केजरीवाल सरकार थी, तब कोई चर्चा क्यों नहीं होती थी। अब सांसदों को समझाना पड़ता है कि कैसे दिल्ली का प्रदूषण बढ़ा। प्रदूषण तो शीला दीक्षित की सरकार में भी था, तब चर्चा क्यों नहीं हुई? केंद्र सरकार ने कभी भी चर्चा के लिए इनकार नहीं किया।
क्या आपको नहीं लगता कि योजनाएं तो बहुत हैं, लेकिन सिस्टम में बैठे अधिकारी ढंग से काम नहीं कर रहे?
अधिकारी काम करते हैं। अब कोई खिंचतान नहीं होती। सबसे बड़ा रोल चीफ सेक्रेटरी साहब का है। जब लड़ना चाहिए तो लड़ते हैं। केजरीवाल भी हर जगह जाकर लड़ते रहते थे। लेकिन अब ऐसी कोई स्थिति नहीं है। जो अधिकारी काम नहीं करेगा उस पर एक्शन लिया जाएगा। प्रदूषण को लेकर मैं खुद जमीनी स्तर पर समीक्षा कर रहा हूं।
‘पंजाब में पराली कम जली फिर भी ए. क्यू. आई 400 क्यों?’
पंजाब में पराली के मामलों में रिकॉर्ड गिरावट के सवाल पर मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि पर्यावरण के खिलाफ जो भी चीज़ें हैं, उन पर रोक लगानी ही पड़ेगी। पंजाब के लिए आप देखें—केंद्र सरकार ने कितना बड़ा काम किया है। मैं समझता हूं कि अगर अब तक पराली पर सबसे बड़ा काम हुआ है, तो केंद्र सरकार ने किया है। दस लाख से ज़्यादा मशीनें भेजी गई हैं, यह आपके ध्यान में रहना चाहिए कि इसका असर आंकड़ों पर भी पड़ता है। भले ही आकंड़े कम आए हों लेकिन प्रदूषण के लिए पराली भी जिम्मेदार है, अगर पंजाब में पराली के मामले कम आए हैं तो वहां का ए. क्यू.आई 400 के आस पास क्यों है?
दिल्ली में करीब 12 लाख गाड़ियों की एंट्री बैन है, उससे प्रदूषण कितना कम होगा?
बिल्कुल मैं आपकी बात से सहमत हूं, इसमें आप कोई फर्क नहीं डाल सकते। क्योंकि आसमान की सीमा नहीं बनाई जा सकती है, लेकिन कम से कम सीधा दिल्ली में आकर प्रदूषण न करें—इस पर रोक लगाने का काम किया गया है। वह भी ग्रैप-4 के दौरान किया गया है। अगर आप अपनी गाड़ी ला भी रहे हैं, तो यहां आकर प्रदूषण न फैलाएं—इसको रोकने के लिए ये कदम उठाया है। लेकिन यह परमानेंट नहीं है।
पहले की सरकार में आरोप लगते थे, अब पड़ोसी राज्यों से प्रदूषण को लेकर समन्वय कैसा है?
2–3 साल में एक बहुत बड़ा व्यापक बदलाव आपको दिखाई देगा। जब आप राज्य की बात करते हैं, तो पहले जो आप की सरकार थी उन्होंने आरोप लगाने और लड़ने–झगड़ने में ही पूरा समय खत्म कर दिया। लेकिन अब कोई दिक्कत नहीं है। जब भूपेंद्र यादव जी बैठक लेते हैं, तो सभी राज्य आते हैं—पंजाब भी आता है। सभी राज्यों को जो टारगेट दिए जाते हैं, वे लगभग-लगभग पूरे किए जा रहे हैं।
अरावली में कोई बदलाव नहीं किया गया। विपक्ष ने उसे एक परसेप्शन बनाने की कोशिश की। कई बार हमें लगता है कि ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन जब सरकार को पता चला कि इसको इश्यू बनाने का काम किया जा रहा है तो भूपेंद्र यादव जी ने स्पष्ट कह दिया कि अरावली को कोई खतरा नहीं है। उसे कोई नहीं छेड़ सकता, अरावली पर्वतमाला पहले से ज्यादा सुरक्षित है।



