हरियाणा: राखीगढ़ी में मिले कच्ची ईंटों के दो मंजिला भवन के प्रमाण

आधुनिक युग में मनुष्य ने सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भले ही कितनी ही तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन हड़प्पा कालीन सभ्यता व संस्कृति के समय में भी सिविल इंजीनियरिंग के जो तथ्य सामने आए हैं उनको देखकर हर कोई आश्चर्यचकित है। राखीगढ़ी में साइट नंबर तीन पर एक 18 फुट लंबी, चौड़ी पक्की ईंट की दीवार निकली हुई है।

राखीगढ़ी में खोदाई का कार्य जारी है। खोदाई में मिले अवशेषों से अनेक रहस्यों से भी पर्दा उठ चुका है। हालांकि अभी भी कुछ ऐसे अनसुलझे सवाल हैं, जिनका पता लगाने के लिए पुरातत्वविद लगे हुए हैं। राखीगढ़ी की खोदाई में साइट नंबर तीन पर दो मंजिला कच्ची ईंटों के मकान के प्रमाण मिले हैं। पुरातत्वविद अनुमान लगा रहे हैं कि भूतल रहने के लिए प्रयोग में आता था और दूसरी मंजिल को वो लोग स्टोर के रूप में अपना सामान रखते के लिए प्रयोग में लेते थे।

पुरातत्वविदों के अनुसार राखीगढ़ी एक छोटे से शहर से लेकर महानगर तक विकसित हुआ। राखीगढ़ी में रहने वाले हड़प्पन लोगों ने किस प्रकार झोपड़ियों से लेकर दो मंजिला भवन तक अपने रहन-सहन का तरीका धीरे-धीरे बदला और राखीगड़ी को एक विकसित महानगर स्थापित किया।

हड़प्पा इंजीनियरिंग से मेल खाती है आज की सिविल इंजीनियरिंग
आधुनिक युग में मनुष्य ने सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भले ही कितनी ही तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन हड़प्पा कालीन सभ्यता व संस्कृति के समय में भी सिविल इंजीनियरिंग के जो तथ्य सामने आए हैं उनको देखकर हर कोई आश्चर्यचकित है। मॉडर्न युग में सेक्टर काटकर जिस प्रकार से बड़े महानगरों का विस्तार किया जाता है, उसी प्रकार से राखीगढ़ी महानगर के विस्तार के सबूत सामने आने से इतिहास को जानने व समझने वाले लोग हैरान हैं। शुरू में मकान कच्ची ईंटों की दीवारों से बनाए जाते थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे पक्की ईंटों से मकान बनाने शुरू कर दिए थे।

साइट नंबर तीन पर एक 18 फुट लंबी, चौड़ी पक्की ईंट की दीवार निकली हुई है। दीवार को बनाने के लिए मिट्टी की गारा का प्रयोग किया गया है। हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी आज भी यह दीवार चूने जैसी मजबूती की तरह खड़ी हुई है। वहीं, दीवार को बनाने के लिए काफी अच्छी तकनीक का प्रयोग किया गया है। दीवार एकदम से सीधी है। उसके साथ ही कच्ची ईंटों की दीवारें भी मिली हैं। इसी के साथ-साथ गंदे पानी की निकासी के लिए एक पक्की नाली मिली है और नाली की दूसरी तरफ मकानों के बीच गली भी मिली है। कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि करीब 8 हजार वर्ष पहले भी ऐसी सिविल इंजीनियरिंग होती थी, जिसका अनुसरण आज 21वीं शताब्दी में हो रहा है।

अधिकारी के अनुसार
राखीगढ़ी में 15 मई तक खोदाई चलेगी। इस दौरान साइट नंबर-7 पर कंकाल व कच्ची ईंटों की दीवारें निकली हैं। इनका विश्लेषण किया जा रहा है। साइट नंबर तीन पर निकले 2 मंजिला भवन का भी विश्लेषण जारी है। – डॉ. संजय मजुल, महानिदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, नई दिल्ली।

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