बे-बस दिल्ली: सार्वजनिक परिवहन सेवा बड़ा मुद्दा, निजी वाहन ही बने सहारा

राजधानी में सार्वजनिक परिवहन सेवा बड़े मुद्दाें में से एक है, लेकिन इसे लेकर जमीनी स्तर पर ठोस योजना बनाकर काम नहीं किया जा रहा है। कहने को तो कागजों में योजनाएं ढेरों हैं, लेकिन समय पर योजनाओं को परवान नहीं चढ़ाया जा सका है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में सार्वजनिक परिवहन सेवा का मुद्दा चर्चा में है। सभी पार्टियां इसे लेकर अपने-अपने दावे कर रही हैं। सार्वजनिक परिवहन सेवा के दुरुस्त होने से न सिर्फ आवागमन आसान होगा, बल्कि वायु प्रदूषण पर भी लगाम लगाने में मदद मिलेगी।

मौजूदा समय में दिल्ली की सड़कों से बसों की संख्या लगातार घट रही है। नई बसों की खेप बीते साल जुलाई से नहीं आई हैं। मोहल्ला बस योजना पर भी काम नहीं हो पाया है। दूसरी तरफ दिल्ली-एनसीआर की कनेक्टिविटी को मजबूत करने के लिए तैयार की गई रिंग रेल परियोजना पर काम ठीक से नहीं किया जा रहा है। दिल्ली के प्रदूषण में वाहनों के धुएं का हिस्सा ज्यादा है, ऐसे में जोर दिया जाता है कि सार्वजनिक परिवहन सेवा मजबूत की जाए, ताकि सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या कम हो।

हालांकि, ये हो नहीं पा रहा है। हर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल परिवहन सेवा को बेहतर बनाने का दावा करते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। स्थिति यह है कि तमाम प्रयासों के बाद भी सार्वजनिक बस सेवा की कमी पूरी नहीं हो रही। पुरानी बसें भी चलाई जा रही हैं, जो रास्ते में खराब हो जाती हैं। बसों की कमी का शहर की यातायात व्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है। बसें कम होने के कारण लोग निजी वाहनों का सहारा ले रहे हैं। इससे सड़कों पर जाम लगने से लोग परेशान होते हैं।

मानक से कम है बसों की संख्या
मौजूदा समय में दिल्ली में प्रति लाख जनसंख्या पर लगभग 45 बसें संचालित होती हैं, जो आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के प्रति लाख जनसंख्या 60 बसों के मानक से कम है। राजधानी में फिलहाल डीटीसी की 4,536 बसें सड़कों पर चल रही हैं। इसमें 2966 सीएनजी बसें और 1,570 ई-बसें हैं। वहीं, दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टीमाॅडल ट्रांजिट सिस्टम (डिम्ट्स) की ओर से 3,147 बसें संचालित की जा रही हैं।

वादों के ट्रैक पर दौड़ रही रिंग रेल
दिल्ली की रिंग रेल राजनीतिक दलों के वादों के ट्रैक पर दौड़ रही है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान सभी सियासी दलों ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसका वादा तो जरूर किया, लेकिन अब तक दिल्ली की लाइफ लाइन नहीं बन सकी। 35 किलोमीटर लंबा रिंग रेल नेटवर्क दिल्ली ही नहीं फरीदाबाद, पलवल, गाजियाबाद व अन्य शहरों से दिल्ली आने-जाने वाले यात्रियों के लिए भी यह लाभदायक साबित हो सकता है।

नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशनों पर आम पैसेंजर ट्रेनों के आवागमन में कोई दिक्कत न आए इसे ध्यान में रखकर 1975 में दिल्ली में रिंग रोड के समानांतर रिंग रेल की पटरी बिछाई गई थी। मालगाड़ी चलाने की शुरुआत के साथ ही 1982 में एशियाई खेलों के दौरान इस नेटवर्क पर कुल 36 लोकल ट्रेन चलने लगी थी। अब प्रतिदिन पांच जोड़ी ट्रेनें चलती हैं। वह भी अधिकांश खाली रहती है। प्रतिदिन इस ट्रैक से 70 मालगाड़ियां गुजरती हैं।

दिल्ली में निजी वाहनों को कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुदृढ़ करना होगा। इसके लिए सर्वप्रथम लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए काम करना पड़ेगा। वाहन व्यवस्थित हो चालकों का व्यवहार सौम्य हो। सुरक्षा की व्यवस्था हो। -अतुल रंजीत कुमार, राष्ट्रीय महासचिव, सड़क सुरक्षा संस्था गुरु हनुमान सोसाइटी ऑफ भारत

रिंग रेलवे को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। 15 मिनट के अंतर पर ट्रेनों का संचालन होना चाहिए। रोजाना सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक छह महीने के लिए ट्रायल बेसिस पर ट्रेनों का संचालन किया जाए। इससे डीटीसी बस टर्मिनलल की भी व्यवस्था होनी चाहिए। – वाईएस राजपूत, पूर्व अधिकारी, भारतीय रेल

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