लोकसभा चुनाव: प्रदेश के चुनावी समर में उठी लहरों ने दिखाया अपना करिश्मा

उत्तराखंड के चुनावी समर में उठीं लहरें कई उम्मीदवारों को बहा ले गईं। आपातकाल के तुरंत बाद हुए 1977 के लोस चुनाव ने वास्तव में भारतीय लोकतंत्र की ताकत का परिचय दिया। इस चुनाव में जनता पार्टी की शानदार जीत हुई, जिसने सत्तावादी शासन को स्पष्ट रूप से खारिज करने का संकेत दिया।

लोकसभा चुनावों के इतिहास में जब-जब लहर उठी, उससे उत्तराखंड की सियासत भी महफूज नहीं रही। चुनावों के दौरान उठी लहरों ने अपना करिश्मा दिखाया और इनके आगे विरोधी दल और उनके उम्मीदवार ठहर नहीं पाया। कभी इमरजेंसी के खिलाफ उठी लहर ने कमाल दिखाया तो कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उठी सहानुभूति की लहर ने विरोधियों का सूपड़ा ही साफ कर दिया।

चुनावों में उठी राम लहर से भाजपा ने जड़े जमाईं तो मोदी लहर में उसका राजनीतिक साम्राज्य और अधिक फैल गया। इन चुनावी लहरों में उत्तराखंड के मतदाताओं ने अपने मतदान व्यवहार में उल्लेखनीय एकजुटता और निर्णायकता दिखाई। इन लहरों के दौरान उम्मीदवारों के चुने जाने का अंतर कभी-कभी 65 से 70 फीसदी तक पहुंच गया।

जीत का यह भारी अंतर लहर की ताकत और राज्य में लोगों के मतदान पैटर्न को किस हद तक प्रभावित करता है, इसका प्रमाण है। उत्तराखंड में चुनावी लहरों की घटना के पीछे एक कारण राज्य के मतदाताओं पर राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक घटनाक्रमों का मजबूत प्रभाव माना जाता है। जनसंख्या और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में राज्य के अपेक्षाकृत छोटे आकार को देखते हुए उत्तराखंड के मतदाता देश के बाकी हिस्सों में चल रही बड़ी राजनीतिक धाराओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते रहे हैं।

1977 के लोस चुनाव ने भारतीय लोकतंत्र की ताकत का परिचय दिया
नतीजतन जब राष्ट्रीय स्तर पर कोई लहर उभरी, तो वह राज्य में गहरा असर दिखा गई। 1951 में स्वतंत्रता के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के सभी प्रत्याशी टिहरी गढ़वाल को छोड़कर भक्त दर्शन गढ़वाल से 68.37 प्रतिशत, महावीर त्यागी देहरादून से 63.73 प्रतिशत, सीडी पांडे नैनीताल से 57.37 प्रतिशत, देवीदत्त अल्मोड़ा से 54.60 प्रतिशत जनता के खूब वोट पाने में कामयाब रहे। आपातकाल के तुरंत बाद हुए 1977 के लोस चुनाव ने वास्तव में भारतीय लोकतंत्र की ताकत का परिचय दिया। इस चुनाव में जनता पार्टी की शानदार जीत हुई, जिसने सत्तावादी शासन को स्पष्ट रूप से खारिज करने का संकेत दिया।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की दुखद घटना के बाद 1984 में कांग्रेस पार्टी को मिले व्यापक समर्थन और सहानुभूति का प्रतिबिंब थी। 1984 में हुए आम चुनाव में लगभग सभी कांग्रेसी उम्मीदवार नैनीताल से सतेंद्र चंद्र गुड़िया को 64.45 प्रतिशत, टिहरी गढ़वाल से ब्रह्म दत्त को 63.58 प्रतिशत, गढ़वाल से चंद्र मोहन सिंह नेगी 60.61 प्रतिशत, अल्मोड़ा से हरीश रावत 61.26 फीसदी, हरिद्वार से सुंदरलाल 57.35 फीसदी वोट लाने में कामयाब रहे। 2014 और 2019 में मोदी लहर चली।

दोनों बार पांचों सीट बीजेपी उम्मीदवार प्रचंड वोट से जीतने में कामयाब रहे। लोकसभा चुनाव में टिहरी गढ़वाल से कांग्रेस के टिकट पर 1957 में जीते महाराजा मानवेंद्र शाह का राज्य में सर्वाधिक 78.89 प्रतिशत वोट प्राप्त करने का इतिहास है। इस आंकड़े का रिकॉर्ड कोई लहर भी नहीं तोड़ पाई।

-शीशपाल गुसाईं

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